जन्मजन्मांतर कृतं पापं व्याधि रूपेण बाधते।
तच्छान्तिरौषधैनिर्जपहोम सुरार्चने:।
अर्थात :-पूर्व जन्म का पाप व्यक्ति को रोग का रूप धारण कर पीड़ित करता है जिसकी शांति, औषधि, दान, जप होम और ईश्वर की आराधना से होती है। यह हम ग्रहो और नक्षत्रो के माध्यम से समझ सकते है कि हमारे रोग का कारण क्या है। दवाई तो अपना असर करती ही है लेकिन ग्रहो से यह जानकारी मिलती है कि रोग क्यों हुआ और कब तक है तब उस ग्रह से सम्बंधित उपाय आदि करके हम लाभ प्राप्त कर सकते है।
ग्रह हमारे शरीर मे उत्पन्न होने वाले किन रोगों का कारण बनते है यह हमारे ऋषि मुनियो नें इस प्रकार बताया है। यदि नेत्र है तो हम दुनिया को देख सकते है, प्रकृति का सौंदर्य देख सकते है। हमारी स्वयं की सुंदरता मे आँखों का बडा महत्व है। आँख न हो तो सब कुछ होते हुए भी अंधेरा छाया रहता है।
Right eye सूर्य और द्वितीय भाव से व left eye चंद्र व द्वादश भाव से विचार की जाती है। और शुक्र हमारी नेत्र ज्योति का कारक है। राहु मोतियाबिंद का कारण बनता है। यदि सूर्य second Lord, चंद्र twelth lord एवं शुक्र यदि पीड़ित हो, दुस्थान मे क्रूर ग्रहों से देखें जाते हो तो हमारे नेत्रो की ज्योति गड़बड़ती है, नेत्र रोग होते है, आँखों मे ulcer हो जाते है।यदि शुभ ग्रह से देखें जाते हो तो रोग मे कमी आती है। वृष व मीन राशि के पीड़ित होने पर भी रोग उत्पन्न होते है। यदि नेत्रों के कारको के ऊपर से क्रूर गोचर होता है तब भी नेत्र रोग हो जाते है।
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नेत्र रोग के योग:-
* द्वितीय मे सूर्य व द्वादश मे चंद्र नेत्रों को नुकसान पहुंचाते है।
* यदि सूर्य और चंद्र शनि या मंगल से पीड़ित हो तब भी नेत्रों को हानि करते है।
* अष्ट्म भाव मे सूर्य right eye मे दिक्क़त करता है।
* शनि मंगल की षष्ठ भाव व अष्टम भाव मे युति नेत्रो को हानि करती है।
* सूर्य की कर्क लग्न मे स्थिति नेत्र रोग देती है।
* क्रूर ग्रहो की स्थिति छठे व आठवे भाव मे नेत्र रोग देती हैं।
* सूर्य और चन्द्र यदि राहु द्वारा पीडित हो तो नेत्र रोग होते हैं
* सूर्य और चन्द्र दुस्थान मे हो तो नेत्र रोग देते है।
* द्वितीय व द्वादश भाव के स्वामी दुस्थान मे नेत्र रोग देते हैं।
* चन्द्र राहु द्वादश मे शनि नवम भाव मे, सूर्य सप्तम,अष्टम मे और क्रूर नवमांश मे नेत्र रोग देता हैं।
* कर्क मे सूर्य पीडित होने पर मोतिया विन्द करता है।
* सूर्य लग्न मे पीडित होने पर मोतिया विन्द करता हैं।
* शुक षष्ठेश के साथ नेत्र रोग देता हैं।
* सूर्य व चन्द्रमा नवम भाव मे नेत्र रोग करते है।
* शुक्र शनि से पीड़ित होने पर नेत्र रोग करता है।
* शनि केतु अष्ट्म भाव मे नेत्र रोग देता है।
* सूर्य और चंद्र यदि दूसरे या वारहवे भाव मे शनि से देखेंगे जाते हो तो बहुत सारे नेत्र रोग होते है।
* सूर्य और चंद्र यदि द्वितीय या द्वादश हो तो night blindness भी करते है।
* सूर्य यदि सिंह राशि मे और पीड़ित हो तो भी night blindness होती है।
* सूर्य तुला मे पीड़ित होने पर रात्रि को नेत्र पीड़ा करता है।
* द्वितीय व द्वादश के स्वामी शुक्र के साथ पीड़ित होने पर night blindness होती है।
* नेत्र रोग होने पर सूर्य की पूजा अर्चना व जप लाभकारी रहता है।
* चक्षुषोपनिषद का पाठ विशेष लाभ कारी सिद्ध होता है।
सम्बंधित ग्रहो के जप दान से अवश्य लाभ मिलता है उन्हें करना चाहिए।
साथ साथ :-महा मृतुन्जय मन्त्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
या अच्युत मन्त्र:- अच्युतानंद गोविंदा नामोच्चारण भेषजात् | नश्यन्ति सकलं रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम।।
का जप विशेष लाभकारी रहता है। क्रम जारी है….
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