गंगा स्नान करने का विषेश महत्व
ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि अषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। बीते 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी पड़ी थी। जिसमें भगवान विष्णु के निंद्रा में जाते ही मांगलिक कार्यक्रमों पर रोक लगा दी गई थी। मान्यता है कि मांगलिक कार्यक्रमों में भगवान विष्णु की उपस्थिति शुभ मानी जाती है। देवउठनी एकादशी के दिन बिठूर, परमट घाट, सरसैया घाट, गोला घाट, मैस्कर घाट समेत गंगा किनारें घाटों पर भक्त स्नान को जाते है। आज के दिन गंगा स्नान का विषेश महत्व होता है।
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आज शाम 4 बजकर 04 मिनट तक का योग
दीपावली के 11 दिन बाद देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। 11 नवंबर की शाम 6 बजकर 46 मिनट से एकादशी की तिथि शुरू हो जाएगी, जो 12 नवंबर की शाम 4 बजकर 04 मिनट तक जारी रहेगी, उदया तिथि के कारण 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी। रवि योग सुबह 7 बजकर 52 तक जारी रहेगा, इसके बाद सर्वाथ सिद्धि योग की शुरूआत होगी। यह योग शादी विवाह की मनोकामना पूर्ण होने के लिए विशेष लाभ वाला माना गया है। उन्होंने बताया कि इस योग में पूजा करने से शादी में आने वाली अड़चनों से मुक्ति मिलती है। देवउठनी एकादशी में भगवान को प्रसन्न करने के लिए ऋतु फल गन्ना, सिंघाड़ा व सब्जियों का भोग लगाया जाता है।
तुलसी विवाह के बाद विदाई होने पर मनेगी देव दीपावली
देवउठनी एकादशी में माता तुलसी और शालिग्राम का विवाह होता है, मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर माता तुलसी की विदाई होती है, जिस देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है। तुलसी विवाह के साथ ही सारे मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाएंगें, जो 15 दिसंबर तक जारी रहेंगे। जिसके बाद 15 दिसंबर को सूर्य धनुराशि में प्रवेश करेगा, जिसके साथ खरमास प्रारंभ हो जाएगा, इस दौरान मांगलिक कार्यक्रमों पर रोक लग जाएगी। 15 जनवरी को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही एक बार फिर शादी विवाह का दौर शुरू होगा, जो 2 मार्च तक जारी रहेगा।
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