जन्मजन्मांतर कृतं पापं व्याधि रूपेण बाधते।
तच्छान्तिरौषधैनिर्जपहोम सुरार्चने:।
अर्थात:- पूर्व जन्म का पाप व्यक्ति को रोग का रूप धारण कर पीड़ित करता है जिसकी शांति, औषधि, दान, जप होम और ईश्वर की आराधना से होती है। यह हम ग्रहो और नक्षत्रो के माध्यम से समझ सकते है कि हमारे रोग का कारण क्या है। दवाई तो अपना असर करती ही है लेकिन ग्रहो से यह जानकारी मिलती है कि रोग कहो हुआ और कब तक है तब उस गृह से सम्बंधित उपाय आदि करके हम लाभ प्राप्त कर सकते है।
ग्रह हमारे शरीर के किन अंगों पर प्रभाव रखते है यह हमारे ऋषि मुनियो नें इस प्रकार बताया है।
सूर्य:- पेट, हड्डी, सीधी आँख, हृदय, चर्म, सिर,शरीर के लक्षण।
चन्द्रमा:- हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क, रक्त, उल्टी तरफ कि आँख, गुर्दे कि क्रिया, शरीर मे जल,आहार नली।
मंगल:- रक्त, मज्जा, ऊर्जा, गर्दन, रक्त का लाल रंग, गुदा, सिर नश, एवं जैविक क्रिया।
बुध:- छाती, nervs, चर्म, नाक, स्पाइन सिस्टम, और गाल ब्लेडर।
गुरु:- जाँघ, चर्बी, ब्रेन, कान, स्मृति, जीभ, स्पलीन, लिवर।
शुक्र:- चेहरे का तेज, नेत्र ज्योति, genetial आर्गेन्स, यूरिन, शरीर की चमक, गले का स्वर, शरीर मे जल, किडनी, सेक्स आर्गेन्स।
शनि:- पैर, हड्डी, muscle, दांत, चर्म, बाल, स्पर्श,limbs.
राहु:- पैर के तलबे और श्वास।
केतु:- पेट
अन्य शरीर के अंगों पर इन ग्रहो का प्रभाव रहता है। औषधियों पर प्रभाव सूर्य व चन्द्रमा का रहता है।
प्राचीन काल मे यह भी निकाल जाता था कि किसी व्यक्ति का उपचार कब से प्रारम्भ करना है।
सम्बंधित ग्रहो से सम्बन्ध रखने वाले ग्रहो के जप दान करने से रोग शांति होती है या लाभ मिलता है।
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इसके साथ साथ:-
महा मृतुन्जय मन्त्र:- ।। ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ ।।
या
अच्युत मन्त्र:- ।। अच्युतानंद गोविंदा नामोच्चारण भेषजात् |
नश्यन्ति सकलं रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम।।
इन मंत्रो का जप विशेष लाभकारी रहता है।
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