Astrology: प्रवज्या का अर्थ है सन्यास, भिक्षाश्रम, एकांतवास।और वास्तविक सन्यास किसी को भी हो सकता है उसमे वस्त्रो को रंगने की आवश्यकता नहीं रहती। राजा जनक तों विदेह के नाम से ही जाने जाते थे जोकि राजा होते हुए भी प्रवज्या मे थे। गौतम बुध राजा के पुत्र होते हुए भी प्रवज्या मे चले गए। लेकिन सन्यासी का रूप कालनेमि राक्षस ने भी धारण किया। अब युग का परिवर्तन हुआ है सब कुछ बदल गया है लेकिन प्रवज्या आज भी होती है। ज्योतिष मे यदि दशम भाव का स्वामी चार ग्रहों के साथ केंद्र या त्रिकोण मे हो तों वो जातक मुक्त हो जाएगा ऐसा बताया गया है। अर्थात उसे जीवन के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी। अब विचार करने योग्य बात यह है कि प्रवज्या होंगी कैसी:-चार ग्रह एक साथ हो तों उसमे जो सर्वाधिक बली ग्रह है उसके अनुरूप प्रवज्या हो जाती है। यदि उन चारो ग्रहों मे दसवे घर का स्वामी हो तों उसके अनुरूप प्रवज्या होती है।
- यदि चन्द्रमा शनि के द्रेष्काण मे हो और उस पर मंगल और शनि की दृष्टि हो तों जातक तपस्वी होगा।
- यदि चन्द्रमा मंगल के नवमांश मे हो और उस पफ शनि की दृष्टि हो तों चन्द्रमा जिस नवमांश मे हो उसके अनुसार प्रवज्या होंगी।
- जन्म राशि के स्वामी को या चन्द्रमा को शनि देखता हो अन्य ग्रह ण देखें तों दीक्षा अवश्य होंगी।
- सूर्य योगिश बना देता है।
- चन्द्रमा तीर्थ यात्रा करने वाला बनाता है।
- बुध मंत्र का साधन करने वाला बना देता है।
- गुरु वेदांत का ज्ञानी बना देता है।
- शुक्र प्रबल हो तों बाहर से साधु सन्यासियो के लक्षण वाला परन्तु भीतर से पाखंडी या नाचने गाने वाला, आडंबरवाला बना देता है।
- शनि के प्रभाव से पतित या पाखंडी होता है।
शुक्ल पक्ष मे चन्द्रमा बली होता है। लेकिन निर्बल चन्द्रमा होने पर यदि उसको लग्न का स्वामी देखता हो तों वह दुःखी होकर भटकने वाला, धन जन से हीन व कठिनता से भोजन दूध प्राप्त करने वाला होता है। प्रवज्या योग के साथ राजयोग हो और बली हो तों वह व्यक्ति प्रवज्या के साथ राजयोगी होता है। लोग उसकी वंदना करते है। और यदि प्रवज्या योगी राज योगो से बली हो तों राजा का सिंहासन को, राज मुकट को ठुकराकर सन्यासी हो जाता है। यदि पाप ग्रह प्रवज्या कारक हो तों ऐसा सन्यास होता है जिसकी निंदा ही होती है वह आलोचना विवादों मे घिरा रहता है।
इसके अतिरिक्त चन्द्रमा को नवमांश मे यदि
- सूर्य प्रभावित करें तों तपस्वी, अनुशासन पूर्ण, व्रत नियम वाला, कंद मूल खाने वाला होता है।
- चन्द्रमा के बली होने से कपाली, अघोरी होता है।
- बुध प्रभावित करें तों योगी, मंत्रो का जानकारी रखने वाला होता है।
- मंगल प्रभावित करें तों लाल कपड़ो वाला साधु होता है।
- गुरु प्रभावित करें तों ज्ञानवान, अचारवान, धर्म का प्रचार करने वाला होता है।
- शुक्र प्रभावित करें तों विलासिता युक्त आधुनिकता से युक्त होता है।
- शनि प्रभावित करेंगे तों नागा साधु दिगम्बर होता है।
राहु के प्रभावित करने से मायावी व केतु के प्रभावित करने से ठगी करने वाला झूठा सन्यासी होता है।
प्रत्येक प्रवज्या के निर्णय तक पहुंचने के लिए बालाबल का निरुपण अवश्य कर्ण चाहिए।
अन्य योगो को भी ध्यान रखना चाहिए। यह सभी योगी दशा आने पर घटित होते व लोप हो जाते है जिसमे यह भी पाया जाता है कि सन्यासी पथ भ्रष्ट हो जाते है चाहे व स्त्री हो, धन हो या लोकप्रियता का मोह।अकसर सामाज व हमारे सामने कई चेहरे आते रहते है।
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