spot_img
Thursday, November 21, 2024
-विज्ञापन-

More From Author

कालसर्प योग: कारण, लक्षण जीवन में संघर्ष और कालसर्प दोष दूर करने के रामबाण उपाय

एस्ट्रो सुमित विजयवर्गीय

यह योग मनुष्य के जीवन मे दुःख एवं संघर्ष को पैदा करने वाला माना जाता है। राहु और केतु हमेशा आमने सामने रहते है ऐसे में यदि सभी सात ग्रह राहु केतु के एक ही तरफ आ जाये यानी के राहु केतु के बीच में आ जाये तो तब कालसर्प योग बनता है। राहु एवं केतु सदैव अन्य ग्रहों के विपरीत भ्रमण करते रहते है। जब भी कोई व्यक्ति जब संघर्ष मे होता है और वह किसी ज्योतिष या दैवज्ञ के पास जाता है तो वह पूछता है कि मेरी जन्म पत्रिका मे कालसर्प दोष तो नहीं लगा हुआ है। और इस दोष का बहुत ही भय व्याप्त है जबकि ऐसा नहीं है हम उन दुष्प्रभावो से बच्चे भी सकते है।

सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि यह सात ग्रह है और राहु केतु दो छाया ग्रह है जिनको मिलाकर नवग्रह होते है। ज्योतिष के अनुसार ज़ब सात ग्रह राहु व केतु के बिछ आ जाते है तो कालसर्प योग बनाता है। इस योग के होने से व्यक्ति का एक समय ऐसा भी बीतता है, जब वह सही निर्णय लेने मे असफल हो जाता है इन दिनों वह जो भी कार्य करता है उसमे नुकसान हो जाता है। परन्तु ज़ब समय करवट लेता है तो वह बुलंदियों पर पहुंच जाता है।

कालसर्प योग के स्वप्न

सर्प दिखना, पानी मे डूबना, नीद मे डरना, मृत्यु भय स्वप्न मे सर्प को मारना या सर्प दंश, मकान गिरते हुए देखना। किसी किसी को हमेशा सर्प भय व्याप्त रहता है।

ये भी पढ़े: भाग्य फले तो सब फले: ज्योतिष में भाग्य की महत्ता और इसके उपाय

योग के प्रभाव से जातक को दरिद्रता, वंश वृद्धि न होना, विवाह न हो पाना, दुर्भाग्य, अपमान, अपयश, कभी कभी गलत कार्य न करनें पर भी दंड मिलना आदि अशुभ फल होते है। कुंडली मे यदि राहु की स्थिति बहुत अच्छी हो तो राहु धनलाभ, उन्नति एवं यश भी देता है। प्रायः 1, 3,6,11वे भाव का राहु स्त्री एवं संपत्ति सुख देता है। इसी प्रकार 2,4,5,7,8, तथा 12वे भाव का राहु कष्टकारक होता है। नवम राहु आर्थिक कष्ट व हानि देता है। दशम का राहु अधिकार संपन्न बनाता है। पंचम राहु संतान सुख मे कमी कर देता है। कालसर्प वाली कुंडली मे राहु अपनी दशा अंतर दशा व गोचर की ख़राब स्थिति मे विशेष कष्ट देता है। शुभ स्थिति मे शुभफल भी प्राप्त होता है।

कुछ कुंडलियो मे राहु केतु के एक ओर सभी ग्रह नहीं होते वरन एक दो ग्रह दूसरी ओर रहते है। कुछ आचार्यो की मान्यता है कि दूसरी ओर स्थित ग्रह यदि अंश मे राहु से कम हो तब भी आंशिक या शांपित कालसर्प योग वाली कुंडली होती है। यदि वाहर निकले ग्रहों के अंश अधिक हो तो कालसर्प योग भंग हो जाता है।

पत्रिका मे कालसर्प योग होने पर कतिपय ग्रह स्वग्रही या उच्च के हो, तो भी कालसर्प योग भंग हो माना जाता है। कोई ग्रह नीच का हो तो प्रभाव मे तीव्रता आ जाती है। कालसर्प योग के पूर्ण खंडित या आंशिक होने पर भी राहु की कतिपय ग्रहों के साथ युति होने पर पत्रिका शापित हो सकती है। इस स्थिति मे भी जातक को कालसर्प योग का अनुभव हो सकता है। लेकिन कालसर्प योग से भयभीत न होकर उसके अंश व उसके भंग होने पर भी ध्यान देना चाहिए।

परेशानी होने पर हम यह भी कर सकते है :-
1-गरुड़ कवच का पाठ
2-सर्प दोष की शांति
3-पितरो की पूजा अर्चना
4-देवी छिन्नमस्ता की आराधना

sumit vijayvergiy
Mob:-9910610461,7088840810

ये भी पढ़े: रोगों पर ग्रहों का प्रभाव: शनि, राहु और केतु ग्रहों के प्रभाव और स्वास्थ्य के लिए ज्योतिषीय उपाय

Latest Posts

-विज्ञापन-

Latest Posts