हमारे जीवन मे जब भी कोई बात हो तों बस एक हीं बात आ जाती है कि यह हमारे भाग्य मे नहीं था या हमारा भाग्य अच्छा है जो हम बच गए। जहाँ तक की यदि भाग्य साथ न दे तों हमे भीख भी नहीं मिलती। हम कभी अन्य लोगो की सफलता का विचार करते समय कहते है कि वो बहुत भाग्यशाली है। “महाभारत का सर्वश्रेष्ठ योद्धा होने के उपरांत भी कर्ण अपना कौशल न दिखा सके यह केवल उनके भाग्य साथ न देने के कारण हुआ। “यहाँ तक कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी लिखा” निज कृत करम भोग सब भ्राता” करम का अर्थ भाग्य या नियति हीं होता है।
ज्योतिष मे गुरु व नवम भाव से भाग्य का विचार किया जाता है यह भाव प्रभावशालिता, गुरु की प्राप्ति, धर्म, तप, शुभ, मंगल, का भी है।
नवमेश व गुरु यदि शुभ वर्गों मे हो। या भाग्य भाव मे गुरु ग्रह हो तों मनुष्य भाग्यशाली होता है।
इसके अतिरिक्त निम्नलिखित बातो का भी विचार करना चाहिए:
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*नवम भाव मे पाप ग्रह, नीचग्रह, अस्त ग्रह हो तों मनुष्य यश, धन व धर्म से हीन होता है।
*पाप ग्रह भी यदि उच्चगत, स्वक्षेत्री, मित्रक्षेत्री हो तों भाग्य साथ देता है।
*नवम भाव पर शुभ ग्रह या नवमेश की दृष्टि हो या योग हो तों भाग्यशाली होता है।
*नवमेश जिस ग्रह की राशि मे हो, वह ग्रह भी भाग्यवर्धक होता है।
*नवमेश की दशा मे भाग्योदय होता है। नवम से पंचमेश अर्थात लग्नेश भाग्य बोधक अर्थात भाग्योदय का फल भोग करता है। अतः लग्न व नवम भावेश, गुरु व नवमेश का अधिष्ठित राशीश यदि स्वउच्च, स्वग्रह, मित्रगृह मे हो तों स्थायी भाग्योदय होता है।
*दशवर्गो मे उच्च, स्वक्षेत्र, निजनवमांश मे स्थित कोई भी पाँच ग्रह यदि नवमेश दृष्ट नवम भाव मे हो तों मनुष्य बहुत धनाढ्य, भाग्यशाली व राजा होता है।
*कोई भी चार ग्रह नवम मे नवमेश से दृष्ट हो तों भी व्यक्ति बहुत भाग्यशाली होता है।
*उक्त नवम भाव के ग्रह यदि उच्च नवमांश या अपने हीं नवमांश मे हो तों अपने हीं देश व अन्य नवमांश मे हो तों जन्मस्थान से दूर भाग्य साथ देता है।
*नवम पर नवमेश या शुभग्रह की दृष्टि हो तों भाग्योदय अवश्य होता है।
*नवम भाव मे पाप ग्रह से युक्त शुक्र या चंद्र ग्रह हो तों गुरु पत्नी से प्रेम सम्बन्ध होते है।
*नवम मे गुरु को सूर्य देखो तों राजा। मंगल देखें तों सेनापति(ips, co, पुलिस, सेना का अफसर )।बुध देखेंग तों धनी। शुक्र देखें तों वाहन को अधिपति, शनि देखें तों विशेष वाहन युक्त होता है. चन्द्रमा देखें तों सुखी होता है।
*नवम मे चंद्र हो और उसे मंगल, बुध शनि देखें तों राजा होता है।
*नवम मे उच्चगत ग्रह हो तों भी मनुष्य राजा होता है।
*सूर्य मंगल के होने से झगडालू, दुःखी लेकिन राजा का प्रिय होता है।
*नवम मे सूर्य, चंद्र, शुक्र साथ हो तों स्त्री कलह, राजा का प्रियपात्र लेकिन धननाश करता है।
*नवम भाव मे पाप ग्रह हो तों पापी होता है। नवमेश पापयुक्त या क्रूर षष्ठयंश मे हो तों भाग्य हीन पापी, धर्म के विरुद्ध आचरण करने वाला होता है।
*नवमेश यदि गुरु युक्त होकर पारावतादि अंशो मे गया हो और लग्नेश पर गुरु की दृष्टि हो तों व्यक्ति बहुत दानशील, बहुत भग्यशाली, राजा उसके समक्ष नतमस्तक होता है।
भाग्य को प्रबल व दोषमुक्त करने हेतु:
*गायत्री मंत्र का जप करे
*रुद्राभिषेक करे
*भाग्येश के मंत्र का जप करे रंग वस्तु आदि का प्रयोग करें
*भाग्य के रत्न का प्रयोग करें
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