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शनि देव का ज्योतिषीय प्रभाव: साढ़ेसाती और ढैया, सुख और दुःख के दाता शनि, शनि के प्रतीक और विशेषताएँ

 

Astro sumit vijayvergiy
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।। शनि गृह।। (shani Dev In Astrology) 

सनातन धर्म में शनिदेव को न्याय के देवता माना जाता है। शनि देव व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर पुरस्कार या दंड देते हैं। इसलिए शनि देव को कर्मफल दाता – giver of karma (न्यायाधीश – Judge) भी कहा गया है। शनिदेव मकर और कुम्भ के स्वामी है और तुला इनकी सबसे प्रिय राशि है जिसमे में ये उच्च के होते है।

सब कुछ पा लेने के बाद बस एक ही चाहत रहती है सुख और वो बिना शनि की कृपा के सम्भव नहीं है। इसलिए ही शनि की गिनती ग्रहो मे पूर्णता मे सबसे अंत सप्तम स्थान पर होती है। कही का भी मुखिया हो ग्राम, नगर, जनपद, प्रदेश,देश या उससे भी ऊपर बिना शनि की कृपा के बिना सम्भव नहीं है। राजा हरिश्चन्द्र, राजा दशरथ आदि नें शनिदेव का कोप भोगा।

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शनि से निम्नलिखित बातो का भी विचार किया जाता है – The following things are also considered from Saturn

शनि जड़ता अथवा आलस्य, रूकावट, घोड़ा, हाथी, चमड़ा, आय, बहुत कष्ट, रोग, विरोध, दुःख, मरण, स्त्री से सुख, दासी, गधा, खच्चर, चांडाल, विकृत अंग, वन मे भ्रमण करने वाले, डरावनी सूरत, दान, स्वामी, आयु, नपुंसक, खग, दासता का कर्म, आधार्मिक कर्म, पौरुषहीनता, मिथ्या भाषण, चिरस्थायी वायु, वृद्धावस्था, नसे, शिशर ऋतु क्रोध, परिश्रम, नीच जन्मा, गोलक, गन्दा कपड़ा, घर, गलत विचार, दुष्ट से मित्रता,कला गन्दा रंग, पाप कर्म, क्रूर कर्म, राख, काले धान्य, मणि, लोहा, उदरता, वर्ष, शूद्र, वैश्य, पिता प्रतिनिधि, दूसरे कुल की विधा सीखना, लंगड़ापन, उग्र, कंबल, पश्चिम की ओर मुख, जीवन देने के उपाय, नीचे देखना या नीचा देखना, जीवनयापन, शस्त्रगार, जाति से वाहर वाले स्थान, ईशान दिशा का प्रिय, नागलोक, पतन युद्ध, भ्रमण, शल्यविधा, सीसाधातु, शक्ति का दुरूपयोग, पुराना तेल, लकड़ी, तमास गुण, विष, भूमि पर भ्रमण, कठोरता, डर, लम्बा निषाद, अटपटे बाल, सर्वभौम सत्ता, भय बकरा, भैस, कमानन्द इच्छुक, वस्त्रों से सजना, यमराज का पुजारी, कुत्ता, चोरी, चित्त की कठोरता आदि का विचार किया जाता है।

Astrology scholar: विद्वान बताते हैं कि शनि देव (saturn) ढाई साल की अवधि पर राशि परिवर्तन करते हैं और इसी दौरान कुछ राशियों पर साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रभाव दिखाई देता है, शनि को ही ज्योतिष मे काल के रूप से जानते है, अकेले शनि ही बहुत सुख ओर बहुत दुःख प्रदान कर सकता है। शनि के चन्द्रमा के द्वादश प्रथम और द्वितीय गोचर होने पर साढ़ेसाती व चतुर्थ अष्ट्म होने पर ढैया का क्रम होता है यह गोचर प्रतिकूल होने पर जीव के बड़े से बड़े राज्ययोग को भंग कर सकता है व जीव की दुर्दशा कर उसका नाम यश मिट्टी मे मिला सकता है।

शनि देव मंत्र – Shani Dev Mantra

शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए और शनि जन्य पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए आप इन मंत्रो का जाप कर सकते है :

शनिदेव मूल मंत्र: ॐ शं शनैश्चराय नमः॥
Om Sham Shaneschraye namah

शनि देव का बीज मंत्र: ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः॥
Om Praam Preem Praum Sah Shanayishraya Namah

शनि का पौराणिक मंत्र: ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।
Om Neelanjanasamabhasam Raviputram Yamagrajam. Chhayamartandasambhootam tam Namami Shanaishcharam.

(Astro sumit vijayvergiy)

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