राजनीति एक ऐसा विषय है जिसकी चर्चा या जिसमे लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाते रहते है। चाय की चुस्की के साथ चर्चाए चलती रहती है। लेकिन चर्चा तब और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब राजनीति मे स्थापित व्यक्ति को पराजित करना बहुत कठिन पड़ता है।
हाल ही मे अभी चर्चाओ मे सम्मान के साथ दो ही नाम आते है प्रधानमंत्री जी श्री मोदी जी व मुख्यमंत्री श्री योगी जी। नरेन्द्र मोदी जी का तुला लग्न है व राशि वृश्चिक है, (वैसे कुछ ज्योतिषाचार्य मोदी जी की कुंडली वृश्चिक लग्न की भी बताते है मगर हमे प्राप्त आकड़ो के आधार पर उनकी कुंडली तुला लग्न की है ) लग्नेश शुक्र एकादश भाव मे सिंह राशि व सिंह नवमांश मे वर्गोंत्तम होता हुए बहुत मजबूत स्थति मे है। जिसे कुम्भ राशि से गुरु देख रहा है। व शनि साथ है जो कि good communication skills के साथ वैवाहिक जीवन का आभाव दिखा रहा है। द्वितीय भाव मे वृश्चिक का चन्द्रमा जोकि दशमेश भी है कन्या नवमांश मे है देश -विदेश मे ख्याति एवं नीच भंग राजयोग का निर्माण कर रहा है। जोकि एक उच्च श्रेणी का राजयोग है। तृतीयेश व षष्ठेश गुरु बुरा स्वामित्व रखता है लेकिन वक्री होकर अत्यंत शुभकारक हो गया है साथ ही चतुर्थेश व पंचमेश शनि से गुरु का सम्बन्ध मंदिर, तीर्थ व ईश्वर कि कृपा से जोड़ता है।शत्रुओ/विरोधियो के लिए सबसे अधिक दुखदायी स्थिति राहु की षष्ठ भाव मे है जिसका dispositor वक्री होकर बैठा है, ऐसी स्थिति मे विरोधी समाप्त होते है या व्यक्ति के समक्ष surrender हो जाते है। केतु सूर्य एवं बुध व्यय भाव मे है केतु एवं बुध भक्ति आध्यात्म की खोज मे लगे रहने वाला व सूर्य पुनः शत्रु का नाश करने वाला है।
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साथ ही जो मुख़्य नाम चर्चा मे रहता है वह है उप्र के मुख़्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी का, उनका जन्म सिंह लग्न व वृष राशि का है। लग्नेश सूर्य धनु राशि व सिंह नवमांश मे परम यशस्वी, तेजस्वी व प्रभावशाली बनाता है।ऐसा व्यक्ति सिंह से सामान गर्जना करने वाला होता है। द्वितीयेश व एकादशेश बुध गुरु के साथ मकर नवमांश मे है व गुरु निज नवमांश मीन मे है जोकि उनको पूजा अर्चना, साधना मे निपुण, धर्म की स्थापना करने वाला, धर्म ध्वज स्थापित करनें वाला बनाता है। यह मन्त्रोंपचार मे कुशल भी बनाता है। पंचम भाव का सूर्य यशस्वी व कुशाग्र बुद्धि बनाता है। षष्ठ भाव मे राहु व शुक्र की युति शत्रुहन्ता विरोधियो को चकानाचूर करने वाली बनाती है। शुक्र निज नवमांश वृष मे होकर षष्ठ भाव मे है जोकि उनको विरोधियो पर विजय पा कर बहुत बढ़ा राजयोग देने मे सक्षम है। षष्ठेश व सप्तमेश शनि चंद्र के साथ दशम भाव मे वक्री होकर एक बहुत बडा जनप्रिय योग,राजयोग, किसी मठ का महंत,व किसी देश -प्रदेश का मुखिया बनाने मे सक्षम है। अष्टम भाव मे मंगल जोकि कन्या नवमांश मे है आपकी वाणी मे विशेष क्षमता प्रदान करता है व दंडात्मक बनाता है इसी मंगल की स्थिति के कारण आप को भय व्याप्त करने वाली धमकिया प्राप्त होती है। केतु आपके भी व्यय भाव मे बैठकर आध्यात्मिक बनाता है।
दोनों ही कुंडलियो मे छटे भाव मे राहु की स्थिति है इसलिए इनके विरोधियों व शत्रुओ पर ये सदैव भारी रहेंगे एवं योगी जी का प्रबल शत्रुनशाक योग है जो उनसे शत्रुता करने वालों को ऐसे ही समाप्त कर देगा जैसे रात के अँधेरे को सूर्य समाप्त कर देता है। दोनों ही कुंडलियो मे दशमेश व सप्तमेश /सप्तम भाव का सम्बन्ध महत्वपूर्ण है। लेकिन राजयोग महादशाओ के फल के अनुसार चलता है और आने वाले समय मे हम सभी योगी जी को बड़ी स्थिति मे देखेंगे।
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