क्या आप बीमार है
जन्मजन्मांतर कृतं पापं व्याधि रूपेण बाधते।
तच्छान्तिरौषधैनिर्जपहोम सुरार्चने:।
अर्थात :-पूर्व जन्म का पाप व्यक्ति को रोग का रूप धारण कर पीड़ित करता है जिसकी शांति, औषधि, दान, जप होम और ईश्वर की आराधना से होती है। यह हम ग्रहो और नक्षत्रो के माध्यम से समझ सकते है कि हमारे रोग का कारण क्या है। दवाई तो अपना असर करती ही है लेकिन ग्रहो से यह जानकारी मिलती है कि रोग कहो हुआ और कब तक है तब उस ग्रह से सम्बंधित उपाय आदि करके हम लाभ प्राप्त कर सकते है।
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ग्रह हमारे शरीर मे उत्पन्न होने वाले किन रोगों का कारण बनते है यह हमारे ऋषि मुनियो नें इस प्रकार बताया है।
बुध:- chest,lungs, nervs, चेचक, मिर्गी, नाक सम्बंधित रोग, उच्च ज्वर, खुजली, अस्थि भंग, टाइफाइड, उन्माद, पागलपन, पित्ताशय के रोग, दौरे पड़ना, paralysis, ulcers, अपच, हैज़ा, मुख के छाले, मुख रोग, एवं सभी प्रकार के चर्म रोग, शरीर मे झंझनाहट होना, सुन्नपन, हाथ पैर कापना ।
गुरु:- liver,गुर्दा, फेफड़ों के रोग, कान के रोग, जीभ के रोग, भूलनें के रोग, अत्यंत मोटापा या दुबलापन, spleen, जाँधो के रोग, उठने बैठने पर पीड़ा होना, जालोदर रोग।
शुक्र :- नेत्र रोग, नज़र गिर जाना, चेहरे की चमक, मूत्र rog, urinary track के रोग, शरीर के तेंज का क्षय, दौरे, हिस्टिरिया, गले का स्वर बिगड़ना, नपुंसकता एवं बाँझपन, incompotency.
इन ग्रहो से पीड़ा होने पर इनसे सम्बंधित जप दान अवश्य करते रहन चाहिए।
बुध:-1- ॐ सौम्यरुपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नौ सौम्यः प्रचोदयात्।।
2- ऊं बुं बुधाय नम:
गुरु :-1- ॐ परब्रह्मणे विद्महे गुरु देवाय धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्
2- ॐ गुं गुरवे नमः
3-शुक्र:- 1-ॐ भृगुराजाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि तन्नो शुक्र प्रचोदयात्
2- ऊँ शुं शुक्राय नम:
इसके साथ साथ :-महा मृतुन्जय मन्त्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
या अच्युत मन्त्र:- अच्युतानंद गोविंदा नामोच्चारण भेषजात् | नश्यन्ति सकलं रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम।।
का जप विशेष लाभकारी रहता है। क्रम जारी है….
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