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Bihar Politics: नीतीश के हाथ ‘तीर’ की कमान, तेजस्वी के ‘CM सपने’ पर होगा घामासान!

बीतें कई दिनों से JDU के अंदर उठापटक की खबरें आ रही थी। जो अटकलें लगाई जा रही थी कि ललन सिंह अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देंगे और JDU की कमान नीतीश कुमार सभांलेंगे। ये अटकलें सही साबित हुई। नीतीश के JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही अब कहा जा रहा है कि नीतीश का ये कदम उनके राजनीतिक बड़े भाई लालू प्रसाद यादव की प्रेशर पॉलिटिक्स को तोड़ने का पहला कदम है।

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इंडिया गठबंधन की पटकथा लिखने वाले नीतीश फिलहाल लालू यादव की राजनीतिक चाल में फंसे हुए हैं। लेकिन CM नीतीश का ये कदम अब लालू यादव को चिंतत कर सकता है। लालू यादव की तरफ झुकाव रखने वाले JDU के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के हाथों में कुछ नहीं है। वो JDU में अब कोई फैसला नहीं ले सकते हैं। फिलहाल लालू यादव और पूरे RJD कूनबे की एक ही ख़्वाहिश है कि तेजस्वी जल्द से जल्द मुख्यमंत्री बने। इनके सपने पर CM नीतीश राहु-केतू की तरह नजर गराए बैठे हैं।

लालू और नीतीश के बीच फिर से बढ़ी खाई!

साथ आकर बीजेपी को लोकसभा चुनाव के लिए चुनौती देने वाले लालू और नीतीश में फिर से दुरियां बढ़ने लगी है। बड़े भाई और छोटे भाई की मुलाकात पिछले 74 दिनों से नहीं हुई है। दोनों नेताओं की मुलाकात पिछले 16 अक्टूबर को हुई थी। 16 अक्टूबर को दोनों नेताओं की आखरी मुलाकात राबड़ी आवास पर हुई थी। इससे पहले नीतीश और लालू की मुलाकात लागातार हो रही थी।

दोनों नेताओं के बीच की दूरी तब और अधिक सामने आई जब इसी महिने इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में दोनों नेता अलग-अलग दिल्ली गए और अलग-अलग वापस आए। इस बैठक में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने PM फेस के तौर पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे किया था। बैठक में लालू यादव ने पीएम फेस पर कोई आपत्ती नहीं जताई। इस घटना से लालू और नीतीश के बीच फिर से खाई बढ़ने लगी।

बिहार की राजनीति में सर्वविदित है कि जिस तरफ नीतीश जाएंगे उस तरफ का पलड़ा भारी होगा। इसलिए गठबंधन किसी के साथ हो मुख्यमंत्री नीतीश ही होते हैं। अगर अभी नीतीश पलटी मारते हैं तो तेजस्वी का मुख्यमंत्री बनने का सपना तो दूर वो उपमुख्यमंत्री भी नहीं रहेंगे। हलांकि भाजपा दावा कर रही है कि नीतीश के लिए अब दरवाजा बंद है। लेकिन नीतीश जानते हैं कि वो जिस तरफ होंगे सत्ता का भोग उसे ही मिलेगा। और अगर सत्ता मिल रही है तो सत्ता का भोग कौन सा नेता छोड़ना चाहेगा।

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