जब कोई घटना घटित होती है तो केस दर्ज होता है। केस की सुनवाई कोर्ट में होती है। कोर्ट में केस की सुनवाई जज करते हैं और कानून के हिसाब से इंसाफ की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या होगा जब कोर्ट में ही क्राइम हो जाए और क्राइम करने वाला जज हो, जिसके साथ क्राइम किया गया वो भी जज हो।
दरअसल बांदा में तैनात सिविल जज अर्पिता साहू ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। सिविल जज अर्पिता साहू का आरोप है कि बाराबंकी में तैनाती के दौरान जिला जज द्वारा उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किया गया। इसकी शिकायत उन्होंने लगातार संबंधित अधिकारियों से की लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। इससे निराश होकर सिविल जज अर्पिता साहू ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख दिया।
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हमारा न्यायिक सिस्टम अतना धवस्त हो गया है कि एक जज की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं होती। इस तरह के केस हमें बताते हैं की काम की जगह पर महिलाओं की हालत कितनी बतदर है। जब एक महिला जज से इस तरह का बर्ताव हो सकता है तो आम महिलाओं का क्या होगा? महिला जज जो खुद कानून की जानकार है। वो न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से गुहार लगा रही है। न्याय की हालत इतनी खराब है कि महिला जज को इच्छा मृत्यु मांगनी पड़ रही है।