spot_img
Friday, November 22, 2024
-विज्ञापन-

More From Author

रामलला की इस अनोखी मूर्ति के दीवाने हुए भक्त, 21 बीघे जमीन पर बना है देश का सबसे बड़ा मंदिर!

Ram lalla Statue : रामलला 22 जनवरी को अयोध्या (Ayodhya) विराजमान होंगे। मगर, क्या आपको मालूम है कि कानपुर में रामलला का देश में सबसे बड़ा मंदिर है? इस मंदिर का नाम भी रामलला के नाम पर ही है। करीब 150 साल पुराने रामलला मंदिर (Ram Mandir) में 4 अंगुल की मूर्ति भगवान श्रीराम लला के रूप में परिवार के साथ विराजमान हैं।

अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के बाद कानपुर के रावतपुर में बना रामलला का ये मंदिर दूसरे स्थान पर आ जाएगा। पुजारी के मुताबिक, ऐसी मूर्ति पूरे देश में कहीं नहीं है।

राम मंदिर आंदोलन का प्रमुख केंद्र भी रहा 

बजरंग दल के प्रांत सुरक्षा प्रमुख आशीष त्रिपाठी ने बताया, “यह मंदिर, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद आदि प्रमुख संगठनों के पदाधिकारी यहीं बैठकर आंदोलन की रूपरेखा तैयार करते थे।

RSS प्रमुख और विहिप के केंद्रीय नेतृत्व से जो भी संदेश आता, यहां चर्चा होती और फिर कानपुर और आसपास के शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता। शिलापूजन, चरण पादुका पूजन समारोह सब यहीं किए गए। मंदिर आंदोलन के प्रमुख आचार्य गिरिराज किशोर, महंत नृत्यगोपाल दास, विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंहल समेत तमाम बड़े नेता और संत यहां आए थे और राम भक्तों को संबोधित करते थे।

मध्य प्रदेश की रानी लेकर आई थीं

रामलला मंदिर की देख-रेख के लिए एक समिति बनाई गई है। समिति के मंत्री राहुल चंदेल ने बताया कि रावतपुर के राजा रावत रणधीर सिंह चंदेल थे। उन्होंने अपने बेटे शिव सिंह की शादी 1870 में मध्य प्रदेश के सुहावल कोठी में बघेल परिवार में की थी।

बारात वापसी के दौरान शिव सिंह ने पत्नी रौताइन बघेलिन से मिलने की इच्छा जताई। लेकिन रानी ने इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि रीति-रिवाजों के अनुसार ही मिलेंगे। इस पर शिव सिंह नाराज होकर चले गए। करीब 8 महीने बाद आगरा में शिव सिंह बेहद बुरी हालत में मिले।

 

पिता की मौत के चौथे दिन बेटे की भी मौत शिव सिंह को बुरी हालत में देखकर 14 दिसंबर, 1872 को राजा रणधीर सिंह अपने प्राण त्याग दिए थे। इसके 4 दिन बाद 18 दिसंबर, 1872 को शिव सिंह की भी मृत्यु हो गई। रानी अपने मायके से रामलला की 5 इंच की मूर्ति लेकर आई थीं। जिसमें भगवान बचपन के रूप में थे। रानी की कोई संतान नहीं थी। इसके चलते 1880 में उन्होंने रामलला मंदिर का निर्माण शुरू कराया।

1895 में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कर उनको विराजमान कराया गया। रानी ने रामलला के नाम पर पूरी संपत्ति कर दी थी । रानी के पास उस वक्त 24 गांव थे। शादी के दौरान रानी रामलला को अपने साथ लेकर आई थीं।

मंदिर में छिपे हैं अनोखे राज 

five-inch-unique-statue-of-ram-lalla-sucking-his-thumb-in-kanpur-temple-is-built-on-21-bighas-of-land

मंदिर बेहद विशाल और भव्य है। मंदिर के अंदर सुंदर नक्काशियां की गई हैं। पुरानी कलाकृतियों को संजोकर रखा गया है। मंदिर में 2 नायाब सीढ़ियां हैं, जो दुश्मनों को धोखा देने के लिए तैयार की गई थीं। सही सीढ़ियां चढ़ने पर ही व्यक्ति मंदिर के ऊपरी हिस्से में जा पाता है, अन्यथा सीधे मंदिर के बाहर पहुंच जाएगा।

वहीं, रामलला के भोग के लिए कुएं का पानी ही प्रयोग में लाया जाता है। यहां ऐसा कुआं बनाया गया है, जिससे दूसरे तल पर खड़ा व्यक्ति भी कुएं से आराम से पानी भर सकता है। आज भी इसे पूरी तरह सहेज कर रखा गया है। मंदिर में रामलला की सुरक्षा के लिए भगवान हनुमान भी विराजमान हैं।

21 बीघे में है मंदिर परिसर 

राहुल चंदेल के मुताबिक, रामलला (Ram lalla Statue) के मंदिर प्रांगण की बात करें तो ये मंदिर 21 बीघे में फैला हुआ था। आज मौजूदा समय में जहां मंदिर है, ठीक उसके पीछे राजा का महल हुआ करता था। महल एक मंजिल नीचे बना हुआ था। अब अवशेष तक नहीं बचे हैं। मंदिर के पीछे सरोवर है। लेकिन मंदिर की ज्यादातर जमीन पर कब्जा हो चुका है।

परिवार सहित विराजमान हैं रामलला

मंदिर के पुजारी आचार्य सुशील मिश्र के मुताबिक, यहां रामलला परिवार समेत विराजमान हैं। यहां रामलला की मूर्ति 5 इंच की है। रामलला यहां बचपन रूप में विराजमान हैं। अयोध्या में भगवान श्रीराम का स्वरूप 5 से 6 वर्ष की आयु का है। यहां श्रीराम बड़े और छोटे सरकार के रूप में जाने जाते हैं। भगवान राम की बड़ी मूर्तियों को बड़े सरकार और छोटी मूर्ति को छोटे सरकार कहा जाता है।

5 बार मंदिर से बाहर आते हैं रामलला

  • साल में पहली बार होलिका दहन करने के लिए निकलते हैं।
  • दूसरी बार अपने भक्तों के साथ होली खेलने के लिए निकलते हैं।
  • तीसरी बार भगवान भूतेश्वर से करीब 1.5 किमी. दूर होली मिलने जाते हैं।
  • चौथी बार जगन्नाथ रथ यात्रा के साथ शहर परिक्रमा पर निकलते हैं।
  • पांचवीं बार विजयदशमी के दिन पालकी में सवार होकर निकलते हैं।

1988 में पहली बार निकली शोभायात्रा 

रामलला मंदिर (Ram lalla Statue) से पहली बार वर्ष 1988 में श्रीराम नवमी के दिन भव्य शोभायात्रा निकाली गई थी। हर घर पर धर्मध्वजा फहराई गई थी। यह परंपरा आज भी कायम है। रामलला मंदिर से शुरू हुई इस यात्रा के बाद तो कानपुर देहात, फतेहपुर के साथ ही बुंदेलखंड के अन्य जिलों में भी इसका आयोजन किया जाता है।

Latest Posts

-विज्ञापन-

Latest Posts