G7 सम्मेलन: 19 मई को जापान के हिरोशिमा शहर में ‘G7’ नामक अमीर देशों के संगठन की बैठक शुरू हो रही है। यह इस संगठन की चौथी बार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मीटिंग में गेस्ट के रूप में शामिल हो रहे हैं। G7 ने 2003 में पहली बार भारत को अपनी बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था। उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी फ्रांस गए थे। भारत संगठन का सदस्य नहीं होने के बावजूद, लेकिन वह इसकी बैठकों में सम्मिलित रहता रहा है।
G7 की कहानी: सऊदी ने अमेरिका को सबक सिखाया, हुआ इतिहास
1973 की घटना है। अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अरब देशों के साथ लड़ाई के लिए इजराइल को 18 हजार करोड़ रुपये की सहायता दी। इससे नाराज हुए ओपेक देश सऊदी अरब के राजा फैसल ने तेल उत्पादन में भारी कटौती की। उनका उद्देश्य था पश्चिमी देशों को सबक सिखाकर इजराइल के पक्ष में खड़े होने वाले देशों को प्रभावित करना।
इस कारण, 1974 में दुनिया भर में तेल की किल्लत हो गई। इससे तेल कीमतें 300% तक बढ़ गईं। इसका सबसे अधिक प्रभाव अमेरिका और उसके समर्थनवादी देशों पर पड़ा। वहां आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ, महंगाई बढ़ गई।
1975 में तेल कीमतों की बढ़ोतरी से परेशान दुनिया के 6 धनी देश एक साथ मिलते हैं। वे अपने लाभों की रक्षा के लिए एक संगठन बनाते हैं। इसे ‘ग्रुप ऑफ सिक्स’ कहा जाता है। यह समूह में अमेरिका, जर्मनी, जापान, इटली, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल थे।
PM मोदी शामिल होने जा रहे हैं G7 की बैठक में, जानिए यह संगठन है क्या ?
जी-7 एक समूह है, जिसमें दुनिया के सात विकसित और धनी देश शामिल हैं। वर्तमान में इसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। इस ग्रुप को “ग्रुप ऑफ सेवन” भी कहा जाता है।
इस समूह की शुरुआत शीत युद्ध के समय हुई थी, जब सोवियत संघ और उसके समर्थनकारी देशों ने “वॉरसा” नामक एक समूह बनाया था। वहीं, पश्चिमी औद्योगिक और विकसित देशों ने दूसरी ओर एक समूह बनाया था।
1975 में वामपंथ विरोधी पश्चिमी देश फ्रांस, इटली, पश्चिमी जर्मनी (उस समय जर्मनी दो टुकड़ों में बंटा था), अमेरिका, ब्रिटेन और जापान एक मंच पर आए। उनका उद्देश्य था संबंधित अर्थव्यवस्था के मुद्दों पर बैठकर चर्चा करना। इस तरीके से इस गैर-सरकारी संगठन की स्थापना हुई। प्रारंभ में ये 6 देश थे, 1976 में कनाडा के शामिल होने से इसे जी-7 कहा जाने लगा।
1998 में G7 संगठन के दूसरे चरण की शुरुआत हुई। इसमें रूस भी शामिल हो गया। उस समय रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन थे। रूस की नीति उस समय अमेरिका और पश्चिमी देशों का समर्थन करती थी। फिर G7 में रूस के शामिल होने के बाद इसका नाम G8 हो गया था। लेकिन 2014 में क्रिमिया में रूस की आक्रमण के बाद उसे संगठन से निकाल दिया गया।