Kanpur News : अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह और आंदोलन शुरू किए जाने में कानपुर के मेस्टन रोड स्थित श्रीराम जानकी मंदिर की अहम भूमिका रही है। यही नहीं इसके साथ ही इसके सामने स्थित मस्जिद (Mandir and Masjid) मछली बाजार की भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
दोनों धार्मिक स्थलों ने 111 वर्ष पूर्व अग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंकने तथा हिंदू व मुस्लिम (Hindu and Muslim) सौहार्द को मजबूत करने का कार्य किया था। आज भी मंदिर की घंटियां और मस्जिद की अजान सौहार्द व प्रेम का संदेश दे रही हैं।
क्या है इतिहास?
यह घटना वर्ष 1913 की है, जब यूनाइटेड प्राविंस के गवर्नर जेएस मेस्टन के निर्देश पर कलेक्टर एचजीएस टेलर व पुलिस अधीक्षक डाड द्वारा मार्ग चौड़ीकरण की योजना बनाई। अंग्रेजों ने डफरिन अस्पताल से तोपखाना बाजार होते हुए मूलगंज तक मार्ग चौड़ा करने का कार्य शुरू किया।
इस बीच मूलगंज (Kanpur News) में मस्जिद मछली बाजार का आगे का भाग तोड़ दिया गया। उसके सामने मंदिर का चबूतरा भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया। इससे आक्रोशित होकर ईदगाह में सभा की गई तो अंग्रेजों ने गोलियां चला दीं। इतिहासकार अनूप शुक्ला बताते हैं कि गोलीकांड में 70 से अधिक लोगों का बलिदान हुआ। सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया। इस पर अंग्रेजों के विरुद्ध हिंदू-मुस्लिम दोनों एकजुट होकर विद्रोह पर उतर आए। इसका विरोध पूरे देश में शुरू हो गया। विरोध अधिक बढ़ा तो भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंग स्वयं अक्टूबर 1913 में घटनास्थल का निरीक्षण करने पहुंचे। इसके बाद भारतीयों पर लगे मुकदमों को वापस लेकर उनको रिहा किया गया।
मंदिर में श्रीराम-लक्ष्मण व माता जानकी के विग्रह
मंदिर (Kanpur Temple) में श्रीराम-लक्ष्मण व माता जानकी के विग्रह विराजमान हैं। मंदिर के गर्भगृह में भी विग्रह के साथ सभा मंडप भी है। यहां श्रीराम परिवार की संवत 1730 में अष्टधातु से निर्मित मूर्ति स्थापित की गई थी। संवत 1852 में हनुमानजी व शिवजी की मूर्ति भी स्थापित की गई।
कई बार हुआ मंदिर का जीर्णोद्धार
मंदिर प्रबंधन के अनुसार मंदिर का निर्माण 1730 संवत में हुआ था। इसका जीर्णोद्धार 1852 संवत में हुआ। इसके बाद वर्ष 2010 में तथा इस वर्ष भी जीर्णोद्धार हुआ है।
क्रांतिकारियों की शरणस्थली रहा, तहखाना भी था
मूलगंज स्थित श्रीराम जानकी मंदिर (बीचवाला मंदिर) क्रांतिकारियों की शरणस्थली भी रही है। क्रांतिकारी आगर शहर आते थे तो मंदिर जरूर आते थे। मंदिर प्रबंधन के अनुसार मंदिर के अंदर तहखाना भी था, जिसका रास्ता किसी दूसरे स्थान तक गया था। फिलहाल तहखाना बंद हो चुका है।
देश की स्वतंत्रता पर फहराया था तिरंगा
देश के स्वतंत्र होने पर बीच वाला मंदिर में 14-15 अगस्त 1947 की रात को तिरंगा झंडा फहराया गया था। बंदूकों से सलामी भी दी गई थी। यह परंपरा आज तक चली आ रही है। हर 14 अगस्त की रात 12 बजे यहां पर तिरंगा फहराया जाता है।