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अधिकारियों की लापरवाही से अब तक नहीं हुआ देश के इस लाल की प्रतिमा का अनावरण, प्रथम विश्व युद्ध में छुड़ाए थे दुश्मनों के छक्के!

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कानपुर के तिलसड़ा गांव में बीते पांच साल से नायक छत्ता सिंह का स्मारक बनकर तैयार खड़ा है, लेकिन अभी तक इसका अनावरण नही हो सका। वही स्मारक के पीछे छत्ता सिंह (Chhatta Singh) का परिवार बदहाल जिंदगी जीने पर मजबूर है। झोपड़ी में रहने वाले नायक के परिवार को आज तक आवास योजना का लाभ भी नही दिया गया। यह अधिकारियों की लापरवाही का जीता जागता प्रमाण है। जिसके चलते परिवार बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर है।

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भारत सरकार एक ओर आजादी के अमृत महोत्सव के तहत मिट्टी को नमन वीरों का वंदन के तहत हर ग्राम पंचायत से कलश में मिट्टी मंगवाकर राजधानी में वाटिका बनाकर वीरों और शहीदों को याद कर रही है।

वही पांच साल बीतने के बाद भी शहीद छत्ता सिंह (Chhatta Singh Statue) के स्मारक का अनावरण न होने से छत्ता सिंह की प्रतिमा सफेद कपड़े से ढकी हुई है। आपको बता दें तिलसड़ा गांव निवासी छत्ता सिंह ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विरोधी सेनाओं के पसीने छुड़ा दिए थे।

इसके चलते उस समय पर अंग्रेज सरकार ने इन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस से सम्मनित किया था। लेकिन इस बहादुर सैनिक को सरकार के साथ कनपुर के लोग भी भूल गए हैं। इस सैनिक का परिवार दिहाड़ी मजदूरी कर पेट पालने को मजबूर है। इतना ही नहीं सरकार की ओर से आज तक उन्हें आवास योजना का लाभ तक नहीं मिल सका है। जिससे जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही साफ दिखाई देती है।

दुश्मनों पर अकेले भारी पड़े थे छत्ता सिंह

तिलसड़ा गांव निवासी हवलदार छत्ता सिंह (Chhatta Singh) भोपाल इन्फ्रेण्टी ब्रिटिश इण्डिया आर्मी में नायक थे। छत्ता सिंह को प्रथम विश्व युद्ध में शौर्य प्रदर्शन के लिये सर्वोच्च वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस देकर ब्रिटिश सरकार ने सम्मानित किया था, लेकिन इस बहादुर हवलदार का परिवार बदहाली का जीवन जी रहा है।

उनके पौत्र नरेंद्र सिंह ने बताया कि ब्रिटिश सरकार ने उनके दादा जी को वीरता का पदक दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक बार जरूर हमें दिल्ली बुलाया था और परिवार के एक सदस्य को सेना में नौकरी दिलाने की बात कही थी, लेकिन वो कुछ कर पातीं, उससे पहले ही उनकी मौत हो गई थी।

क्यों दिया गया था विक्टोरिया क्रास पदक?

सन 1914 में प्रथम विश्व युद्ध छिड़ा था। ब्रिटिश सरकार ने अपने लगभग बारह लाख सैनिक कई देशों में भेजे थे। तब छत्ता सिंह नवीं भोपाल इन्फ्रेण्टी ब्रिटिश इण्डिया आर्मी में नायक थे। 29 साल की उम्र में वे इराक के मोर्चे पर भेजे गये थे।

13 जनवरी 1916 को भारी फायरिंग के बीच उन्होने अपनी जान की परवाह किये बिना अपने घायल कमाण्डिंग ऑफिसर को पांच घण्टे तक कवर किया और उनकी जान बचाई थी।

इस अदम्य साहस को देखकर ब्रिटिश सरकार उन्हें विक्टोरिया क्रास पदक देकर सम्मानित किया था। युद्ध में छत्ता सिंह ने विपक्षी सेना के सैकड़ों जवानों को अकेले मौत के घाट उतार दिया था।

पीएम इंदिरा गांधी ने पदक देकर किया था वादा

छत्ता सिंह (Chhatta Singh) के पौत्र नरेंद्र सिंह पुत्र स्वर्गीय विश्वनाथ सिंह बताया कि, सन 1947 में देश आजाद हो गया था। पच्चीस साल बाद जब देश में आजादी की रजत जयन्ती मनायी गई थी, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने हमारे दादा को दिल्ली बुलवाया था। उन्होंने इस मौके पर दादा जी को संग्राम मेडल दिया था। यह एक वीरोचित सम्मान था।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तिलसड़ा गांव के विकास के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखने के साथ हमारे परिवार में एक युवक को नौकरी देने की बात कही थी, लेकिन उनकी मौत के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इससे लगता है कि सरकार अब छत्ता सिंह को भूल चुकी है।

सिंगापुर में चेकिंग के दौरान जमा हो गया था पदक

देश के इस लाल का स्मारक बनने के बाद एक नया मामला सामने आया है। विकिपीडिया पर मौजूद जानकारी के मुताबिक यह ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया विक्टोरिया क्रास लन्दन में नीलाम हो चुका है। छत्ता सिंह की बेटी रमा सिंह एक बार सिंगापुर गयी थीं।

वहां पर एयरपोर्ट चेंकिंग के दौरान विक्टोरिया क्रॉस निकलवा लिया गया था, जिसे वहां की सरकार ने बाद में निजी नीलामकर्ताओं ने 22 सितम्बर 2006 को इस विक्टोरिया क्रास को 520 पाउण्ड यानी लगभग 51000 रुपए में नीलाम कर दिया था।

नागेंद्र सिंह का कहना है, कि अगर ब्रिटेन सरकार सौ साल बाद एक भारतीय योद्धा की स्मृतियाँ सहेजने के लिये पहल कर सकती है। तो भारत सरकार को चाहिए कि वो विक्टोरिया क्रॉस को भारत वापस लाने का प्रयास करे।

छत्ता सिंह की प्रतिमा को सफेद कपड़े से ढका गया

छत्ता सिंह (Chhatta Singh) के पौत्र नरेंद्र सिंह ने बताया कि यूपी में योगी सरकार बनने के बाद उनके दादा छत्ता सिंह का स्मारक व प्रतिमा का निर्माण हुआ था। प्रतिमा बनकर तैयार हो गई थी, उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या को बीते 25 अक्टूबर 2017 को गांव आकर स्मारक का लोकापर्ण करना था। जिसके चलते अधिकारियों के द्वारा गांव में साफ सफाई कराई गई थी।

कई आलाधिकारियों ने मौके पर पहुंच कर निरीक्षण किया था। लेकिन उसी दिन चुनाव की आचार संहिता लागू होने के चलते उनका आना निरस्त हो गया था, जिसके बाद से पांच साल बीतने के बाद भी स्मारक का अनावरण नहीं हो सका है।

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