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Sunday, May 28, 2023
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Karnataka: सिद्धारमैया को CM बनाने के पीछे क्या हैं पांच बड़े कारण ? डीके शिवकुमार की कहानी से कैसे जुड़ी ये कहानी

Karnataka: पांच दिनों तक की मेहनत के बाद, कांग्रेस ने अंततः कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री का नाम तय कर लिया है। कांग्रेस के प्रमुख नेता सिद्धारमैया होंगे उन्हें कर्नाटक के आगामी मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया है। वह कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार को पीछे छोड़ दिया हैं। डीके शिवकुमार ने भी पूरी कोशिश की है। उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी से मुलाकात की है, लेकिन वहाँ बात नहीं बनी। सिद्धारमैया ने डीके शिवकुमार पर भारी पड़ गए हैं।

इसलिए यह मुख्य सवाल उठता है कि कांग्रेस ने जिस चेहरे को पूरे चुनाव में आगे बढ़ाया, उसे सीएम क्यों नहीं बनाया? क्या है कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनाने की सिद्धारमैया की वजह? और कैसे हुआ कि डीके शिवकुमार पर सिद्धारमैया का भारी पड़ गया? चलिए, इसे जानते हैं…

सिद्धारमैया ने बड़े हिस्से में विधायकों का समर्थन प्राप्त किया

इस चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत हासिल की है। बताया जा रहा है कि विधायकों की बैठक में 95 विधायकों ने सिधार्मैया का नाम स्पष्ट रूप से उठाया। इसका अर्थ है कि विधायकों को मुख्यमंत्री के रूप में सिधार्मैया को ही चुनना है। इस प्रकार, यदि कांग्रेस ने डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री को नियुक्त कर दिया होता, तो संभव है कि आगे चलकर सिधार्मैया विरोध कर सकते थे।

डीके शिवकुमार को मुकदमों की समस्या

दूसरा मुख्य कारण यह है कि डीके शिवकुमार के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं, जो कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है। उनके खिलाफ कई मामले दर्ज हो चुके हैं। इसी बीच, कर्नाटक के डीजीपी को सीबीआई का नया डायरेक्टर नियुक्त कर दिया गया है। कहा जाता है कि सीबीआई के नए डायरेक्टर डीके शिवकुमार को परिचित हैं। दोनों के बीच तालमेल नहीं है। इस परिस्थिति में, कांग्रेस को लगता है कि यदि डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है, तो सीबीआई उनकी पुरानी फ़ाइलों को खोलेगी और इससे सरकार को नुकसान हो सकता है।

पिछड़े वर्ग में सिद्धारमैया की मजबूत पहचान

यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है। सिद्धारमैया की लोकप्रियता हर समुदाय में बहुत उच्च है, खासकर दलित, पिछड़े और मुस्लिम समुदाय में। इसलिए यदि कांग्रेस ने सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री नहीं बनाया होता, तो संभवतः वे पार्टी के खिलाफ जा सकते थे। इस प्रकार, कांग्रेस के द्वारा दलित, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग का एक महत्वपूर्ण वोट बैंक भी हट सकता था।

लोकसभा चुनाव 2024 

2013 और फिर 2018 के बावजूद, कांग्रेस का लोकसभा चुनाव में परफॉरमेंस अच्छी नहीं रही। अब वह रिस्क नहीं लेना चाहती है, क्योंकि सरकार बनाने के बाद भी परिणाम संभवतः संज्ञान नहीं लेता है। सिद्धारमैया के पास पार्टी और सरकार दोनों को चलाने का अनुभव है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं, और 2019 में कांग्रेस को इसमें सिर्फ एक सीट मिली। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी गुलबर्गा से चुनाव हार गए थे। इसलिए अब जब सरकार फिर से स्थापित हो गई है, कांग्रेस का लक्ष्य अब ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतने का है। इसलिए पार्टी के उच्च सदस्यों को सिद्धारमैया को ज्यादा मजबूत समझा जा रहा है।

सिद्धारमैया का ‘अहिन्दा’ फॉर्मूला 

सिद्धारमैया लंबे समय से अल्पसंख्याता (अल्पसंख्यक), हिंदूलिद्वारू (पिछड़ा वर्ग) और दलितों (दलित वर्ग) के लिए काम कर रहे हैं। उनका मुख्य ध्यान राज्य की 61 प्रतिशत आबादी पर है। 2004 से ही उन्होंने इस फॉर्मूले पर काम किया है और यह काफी सफल रहा है। यह एक ऐसा फॉर्मूला है जिसमें अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को एक साथ जोड़ा जा सकता है। कर्नाटक में दलित, आदिवासी और मुस्लिमों का आबादी लगभग 39 प्रतिशत है, जबकि सिद्धारमैया की कुरबा जाति की आबादी भी लगभग 7 प्रतिशत के करीब है। 2009 के बाद से कांग्रेस इस समीकरण का समर्थन करके राज्य की राजनीति में मजबूती प्राप्त कर रही है। इसीलिए कांग्रेस इसे कमजोर नहीं करना चाहती है।

 

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