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साहित्यकार डॉ. बद्री नारायण तिवारी का निधन, कानपुर को दे गए तुलसी और शहीद उपवन

आज हम ऐसे साहित्यकार शख्सियत के बारे में आपको बताएंगे जिनके रोम-रोम में हिंदी बसी हो। जिन्होंने भगवान श्री राम के प्रसार प्रचार से जुड़े कार्यों को करने के लिए मानस संगम साहित्य संस्था की शुरुआत की। हिंदी साहित्य के ऐसे बड़े-बड़े नाम इस संस्था से निकले, जो आज पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। हम बात कर रहे हैं, हिंदी साहित्यकार और वरिष्ठ समाजसेवी बद्री नारायण तिवारी की। लेकिन यह बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है कि जब हम उनकी बात कर रहे हैं तो वह हमारे बीच नहीं हैं।

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उनका 8 फरवरी 2024 को कानपुर में रात तकरीबन साढे आठ बजे 88 साल की उम्र में निधन हो गया। यह खबर जैसे ही कानपुर शहर में फैली, शहर के प्रयाग नारायण शिवाला स्थित उनके घर के बाहर लोगों का तांता लग गया।

वहीं साहित्य जगत में भी शोक की लहर दौड़ गई। विद्यावाचस्पति मानद उपाधि से सम्मानित बद्री नारायण तिवारी का जन्म 13 दिसंबर, 1934 में प्रयाग नारायण शिवाला, गिलिस बाजार में हुआ।

बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ गया

डेढ़ साल की उम्र में ही डॉ. बद्री नारायण के पिता शेष नारायण तिवारी यह दुनिया छोड़ गए, जो प्रख्यात समाजसेवी व पूर्व म्यूनिसिपल कमिश्नर थे। अपने जीवनकाल के इस पड़ाव तक सांस्कृतिक सद्भाव, राष्ट्रीय एकीकरण, सामाजिक, साहित्यिक विषयों पर अब तक 75 पुस्तकें संपादित कर चुके हैं।

मुस्लिम कलाकारों की इंद्रधनुषी रामकथा, रामकथा और मुस्लिम साहित्यकार, विश्वकवि तुलसी और मुस्लिम कलमकार, वोल्गा और गंगा के सेतु-वारन्निकोव, रूस के तुलसीदास जैसी पुस्तकें शामिल हैं। वर्ष 2011 से 2015 तक मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, हिंदी भाषा उत्थान हेतु गठित कमेटी के मनोनीत सदस्य रहे।

शहीद उपवन की स्थापना में निभाई अहम भूमिका

नई पीढ़ी की जानकारी के लिए स्वतंत्रता संग्राम में देश के लिए बलिदान देने वालों, 1857 स्वातंत्र्य समर के क्रांतिवीरों और वीरांगनाओं की स्मृति में कानपुर स्थित नानाराव पार्क में शहीद उपवन की स्थापना में डॉ. बद्री नाराण तिवारी ने अहम भूमिका निभाई। 18 सितंबर, 1992 को यहां पर 51 बलिदानियों की प्रतिमायें लगवाने की दिशा में काम शुरू कराया। साथ ही बलिदानियों को याद रखने के लिए शिलालेख लगवाए।

मोतीझील में तुलसी उपवन दे रहा प्रेरणा

डॉ. बद्री नारायण तिवारी ने 25 सितंबर, 1981 में तुलसी उपवन का निर्माण कराकर कानपुर नगर निगम को समर्पित किया। यह लोगों के लिए प्रेरक दर्शनीय स्थल है, जहां तुलसीदास जी की प्रतिमा के साथ शबरी व राम, केवट और राम मिलन, जटायु मिलन, वशिष्ठ-केवट मिलन के प्रेरक प्रसंग बताती प्रतिमायें स्थापित हैं। यह प्रतिमायें युवा पीढ़ी को संदेश दे रहीं हैं। प्रतिवर्ष तुलसी जयंती पर यहां समारोह आयोजित होते हैं।

देश विदेश में किए गए सम्मानित

  • राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल अंशुमान सिंह के हाथों नेशनल इंट्रीगेशन आफ इंडिया इलाहाबाद द्वारा राष्ट्रीय एकता सम्मान।
  • मारीशस सरकार द्वारा पोटलुई में महर्षि अगस्त्य-2003 सम्मान।
  • उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से हिंदी सेवा सम्मान।
  • हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की सर्वोच्च उपाधि साहित्य वाचस्पति मानद उपाधि।
  • गुजरात हिंदी विद्यापीठ, अमदाबाद गुजरात की ओर से साहित्य श्री उपाधि।
  • मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन ग्वालियर की ओर से सम्मान।
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