साल 2013… ये वो तारीख है जब टीले वाली मस्जिद पर हिंदुओं ने दावा ठोका और कहा कि जहां मस्जिद है दरअसल वहां पर भगवान शेषनागेश्वर तिलेश्वर महादेव का मंदिर था.
जिसको लेकर लखनऊ की सेशन कोर्ट में हिंदू पक्ष ने याचिका दाखिल की थी. इस याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की. और मुस्लिम पक्ष की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया. यानी कि अब टीले वाली मस्जिद में पूजा का अधिकार हिंदू पक्ष को मिल गया.
लखनऊ की सेशन कोर्ट का फैसला
क्योंकि लखनऊ की सेशन कोर्ट का मानना है कि हिंदू पक्ष की याचिका पर जो दावे किए गए हैं वो मुकदमा चलाने योग्य हैं.
दरअसल साल 2013 में हिंदू पक्ष की तरफ से वकील हरिशंकर जैन ने मस्जिद पर लखनऊ कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. दावा किया था ये पूरा परिसर शेषनागेस्ट टीलेश्वर महादेव का है. इसलिए यहां हिंदुओं को पूजा करने दिया जाए.
अगर इस पर बात भरोसा नहीं है तो फिर मामले की जांच की जाए. ताकि सदियों पुराने इतिहास को खंगाला जा सके. और वो सच सामने आ सके.
क्योंकि इतिहास गवाही दे रहा है कि लक्ष्मण टीला पर बनी गुफा को खिलजी ने 1296 ई. में तोड़ने का आदेश दिया था. इतिहासकारों की माने तो लखनऊ के लक्ष्मण टीले पर शेष गुफा थी. जिस पर 1659 ई. में औरंगजेब ने टीले वाली मस्जिद बनाई.
इतिहास के पन्नों में दर्ज इन बातों के आधार पर हिंदू पक्ष ने दावा किया है. जिसके आधार पर कोर्ट ने मुकदमा चलाने की इजाजत दी है. ऐसे में एक बार फिर से विवाद बढ़ने की आशंका तेज हो गई है. क्योंकि इस मस्जिद को लेकर 2018 में जोरदार चर्चा हुई थी..
इस दौरान यूपी में बीजेपी की सरकार बन गई थी. इसके बाद पार्षद रजनीश गुप्ता और रामकृष्ण यादव ने लखनऊ नगर निगम को प्रस्ताव दिया. उसमें कहा गया कि मस्जिद के पास लक्ष्मण की 151 फीट ऊंची मूर्ति लगाई जाए. जिसका विरोध मुस्लिम पक्ष ने किया. तो मामला शांत हो गया.
टीले वाली मस्जिद के लेकर हिंदू पक्ष का दावा
मामला कोर्ट में होने की वजह से विवाद ने ज्यादा तूल नहीं पकड़ा. लेकिन समय-समय पर लखनऊ की टीले वाली मस्जिद के लेकर हिंदू पक्ष लगातार आवाज उठाते रहे हैं. कई तरह से दावे भी किए जाते हैं. जैसे हिंदू महासभा ने साल 2022 में चार दावे किए… उन दावों में पहला दावा था कि लक्ष्मण टीले को ही टीले वाली मस्जिद कहा गया. दूसरा दावा था कि टीले वाली मस्जिद की आड़ में अवैध बस स्टैंड बनाया गया. तीसरा दावा था कि मस्जिद बनाने में LDA की जमीन को कब्जा कर लिया गया और चौथा दावा था कि विवाह के कार्यक्रमों के लिए जगह देकर लाखों रूपए कमाए जा रहे हैं.
इन दावों के बीच एक बार फिर से इस विवाद ने तूल पकड़ा है. क्योंकि लखनऊ की सेशन कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की रिवीजन याचिका को खारिज कर दिया. और कह दिया है कि हिंदू पक्ष ने जो याचिका दायर की है वो मुकदमा चलाने योग्य है. सवाल है कि क्या मुस्लिम पक्ष इस फैसले के आगे सिर झुकाएगा या फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा?