IIT Kanpur Suicides : आईआईटी कानपुर में पिछले कुछ ही महीनों में हुई तीन छात्रों की आत्महत्याओं का मामला खासा तूल पकडता जा रहा है। आत्महत्याओं (Suicides in Kanpur IIT) के पीछे कारणों को जानने के लिए पीएचडी स्कॉलरों के बीच हुए एक सर्वे में रिसर्च स्कॉलरों की चिंता और बेचैनी के बारे में नए नतीजे सामने आए हैं।
सर्वे में बताया गया है कि 80 प्रतिशत रिसर्च स्कॉलर चिंता और बेचैनी से जूझ रहे हैं और 60 प्रतिशत रिसर्च स्कॉलर (Report on Continuous Suicides in Kanpur IIT) ने अपने मानसिक स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए सोचा है।
देश के प्रतिष्ठित इंजिनियरिंग कॉलेजों में शुमार आईआईटी कानपुर में तीन आत्महत्याओं के बाद नई-नई चीजें निकलकर सामने आ रही हैं। छात्रों की संस्था की तरफ से पीएचडी स्कॉलरों के बीच हुए एक सर्वे से चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं।
छात्रों की संस्था वॉक्स ने किया सर्वे
आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) में 20 अलग-अलग विभागों में 2000 से ज्यादा छात्र-छात्राएं रिसर्च कर रहे हैं। स्टूडेंट्स की संस्था वॉक्स की ओर से 200 रिसर्च स्कॉलरों के बीच सर्वे कराया गया था। आईआईटी कानपुर के लिए ये नतीजे खासे उत्साहजनक नहीं हैं। सर्वे रिपोर्ट में इंस्टिट्यूट के पक्ष को शामिल किया गया है।
रिजल्ट के मुताबिक 80 प्रतिशत रिसर्च स्कॉलर चिंता और बेचैनी से जूझते हैं। इसमें 16 फीसदी ने तो अपने मानसिक स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए कोई मदद ही नहीं ली है। 60 प्रतिशत रिसर्च स्कॉलर ने कभी न कभी शोध छोड़ने के बारे तक में सोचा।
स्टाइपेंड से असंतुष्ट हैं ज्यादातर छात्र
हर रिसर्च स्कॉलर को 5 साल तक हर महीने 30-40 हजार रुपये की रेंज में मानदेय मिलता है। 5 साल बाद एक सेमेस्टर के लिए 10 हजार और अगले सेमेस्टर के लिए 8 हजार रुपये महीना मिलता था।
आमतौर पर पीएचडी प्रोग्राम 5 साल से आगे खिंचता है। ऐसे में कम स्टाइपेंड छात्रों के लिए समस्या बन जाता था। 84 फीसदी स्टूडेंट्स का कहना है कि वे अपने परिवार को भी आर्थिक मदद देते हैं। 85 प्रतिशत मानदेय से असंतुष्ट थे।
लैब फंड पर भी छात्र एकमत नहीं
छात्रों के लिए आने वाले लैब फंड पर भी छात्र एकराय नहीं हैं। 34 फीसदी का मानना है कि लैब फंड का सही इस्तेमाल होता है। वहीं कुछ स्टूडेंट्स ने इस पर नाखुशी जताई है।
एक छात्र ने अपने जवाब में कहा है कि प्रॉजेक्ट मनी का ज्यादातर हिस्सा प्रॉजेक्ट गाइड अपने निजी कामों में लगाते हैं। वे कहते हैं कि रिसर्च के लिए छात्र अपने रुपये कहां से लगाएं। हालांकि रिसर्च एंड डिवेलपमेंट डिपार्टमेंट ने आरोपों को नकार दिया।
रिसर्च स्टूडेंट्स के लिए किसी कॉन्फ्रेंस में शामिल होना महत्वपूर्ण माना जाता है। इस विषय पर 198 स्टूडेंट्स ने जवाब दिए। 50 प्रतिशत ने माना है कि वे कॉन्फ्रेंस में शामिल होने पर आंशिक मदद ही ले सके। 5 छात्रों ने कहा कि उन्हें कभी कोई आर्थिक मदद नहीं मिली।
निजी जीवन और मानसिक स्वास्थ्य से भी परेशानी
सर्वे में शामिल 60 फीसदी छात्रों ने कहा है कि वे कम से कम एक बार पीएचडी छोड़ने के बारे में सोच चुके हैं। इनमें से कुछ को दोबारा पूरी हिम्मत से रिसर्च करने की प्रेरणा मिली। वहीं 40 प्रतिशत छात्र-छात्राओं का यह भी कहना है कि वे रिसर्च से संतुष्ट हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के मोर्चे पर 80 फीसदी स्टूडेंट्स ने कहा है कि वे रिसर्च के दौरान बेचैनी, चिंता या किसी मानसिक बीमारी का शिकार हुए हैं। 34 प्रतिशत मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से जूझ रहे हैं।
मेंटल हेल्थ को ठीक करने के मामलों पर आए 162 जवाबों में करीब 62 प्रतिशत ने दोस्तों और परिवार की मदद से खुद को ठीक कर लिया। 11 प्रतिशत काउंसलिंग सर्विस तक पहुंचे और 16 प्रतिशत ने अब तक कोई मदद नहीं ली है।
IIT कैंपस में हुईं सुसाइड की घटनाएं
- 19 अप्रैल 2018 को फिरोजाबाद निवासी पीएचडी छात्र भीम सिंह ने फांसी लगाकर आत्महत्या की।
- 30 दिसंबर 2019 को संस्थान में सिक्योरिटी गार्ड आलोक श्रीवास्तव ने फांसी लगाकर जान दे दी।
- 09 जुलाई 2020 को IIT के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर प्रमोद सुब्रमण्यन ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली।
- 12 मई 2021 को संस्थान में असिस्टेंट रजिस्ट्रार सुरजीत दास ने फांसी लगाकर आत्महत्या की।
- 07 सितंबर 2022 को वाराणसी निवासी पीएचडी छात्र प्रशांत सिंह ने फांसी लगाकर आत्महत्या की।
- 12 दिसंबर 2023 को जैविक विज्ञान और बायो-इंजीनियरिंग विभाग में रिसर्च स्टाफ सदस्य डॉ. पल्लवी ने फंदा लगाकर की थी आत्महत्या।
- 10 जनवरी 2023 की रात मेरठ के रहने वाले एयरोस्पेस से एमटेक सेकेंड इयर के छात्र विकास मीना ने हास्टल के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।