विरोधियों से पार पाने की चुनौती, राज्यों की सहमति अहम
राहुल शर्मा
Delhi । केंद्र की मोदी सरकार संसद के इसी शीतकालीन सत्र में अपना एक और चुनावी बड़ा वायदा पूरा करने जा रही है। ये वायदा एक एक देश एक चुनाव यानि वन नेशन वन इलेक्शन का। बीती 17 तारीख को मोदी कैबिनेट जहां इस फैसले पर मुहर लगा चुकी है, वहीं आने वाले शीतकालीन सत्र में इसे संसद के शीतकालीन सत्र में हरी झंडी दिला दी जाएगी। इस फैसले के लिए दो संशोधन बिल भी संसद में पेश होंगे।
पूर्व राष्ट्रपति की रिपोर्ट पर आधारित है बिल
गौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने एक देश-एक चुनाव पर रिपोर्ट पेश की थी। जिसे चर्चा के बाद सरकार ने मंजूरी दी। समिति ने मार्च में ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराए जाने के सुझाव दिए गए थे।
रिपोर्ट में ये थे सुझाव
समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने के 100 दिन के अंदर स्थानीय निकाय चुनाव भी संपन्न हो जाने चाहिए। मतलब एक निश्चित समय में देश के सभी चुनाव निपट जाने चाहिए। इससे पैसा-समय दोनों की बर्बादी बचेगी।
वन नेशन,वर्तमान में ये है सिस्टम
वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है संसद के निचले लोकसभा चुनाव के साथ राज्य विधानसभाओं के चुनाव भी एकसाथ कराए जाना। भारत का लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव माना जाता है। इसमें लाखों कर्मचारी काम करते हैं और करोड़ों मतदाता वोट डालते हैं। देश में हर 6 महीने में किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। ऐसे में एक देश-एक चुनाव कराने पर जोर दिया जा रहा है।
आजादी के बाद एक साथ हो रहे चुनाव
आजादी के बाद शुरुआती सालों में लोकसभा-विधानसभाओं के चुनाव साथ होते थे। साल 1952, 1957, 1962 और 1967 तक एकसाथ ही चुनाव हुए। इसके बाद कुछ राज्यों का पुनर्गठन हुआ और कुछ नए राज्य बने। इसके अलावा कुछ राज्यों में विधानसभाएं जल्द ही भंग होती गईं, जिससे चुनावी व्यवस्था बिगड़ गई।
वन नेशन-वन इलेक्शन के फायेद-नुकसान
एक देश एक चुनाव का सबसे बड़ा फायदा यह बताया जा रहा है कि चुनाव का खर्च घट जाएगा। अलग-अलग चुनाव कराने पर भारी-भरकम रकम खर्च होती है। यह रकम जनता द्वारा दिया गया टैक्स का पैसा होता है। बार-बार चुनाव कराने पर प्रशासन, सुरक्षाबलों, कर्मचारियों बार-बार ड्यूटी करनी पड़ती है। एक ही दिन चुनाव कराने से वोटरों की संख्या भी बढ़ेगी।. हालाकि अभी तो कुछ लोग वोट डालने के लिए घरों से इसलिए नहीं निकल पाते कि हर साल उन्हें कोई न कोई चुनाव सामने दिखता है।
कुछ कर रहे हैं विरोध
कुछ पार्टियों ने इस प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया है। उनकी दलील दी है कि वन नेशन-वन इलेक्शन से क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा। इससे पूरे देश में अविश्वास प्रस्ताव लाने के प्रावधान को खत्म करना पड़ेगा। उनका मानाना है कि वर्तमान संघीय शासन प्रणाली को नष्ट करके राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू करने और देश को बहुदलीय लोकतंत्र से सिंगल पार्टी स्टेट में बदलने की कोशिश की जा रही है।
ये हैं सबसे बड़ी चुनौती
वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती ये है कि संविधान और कानून में बदलाव करना होगा। एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा, जिसे राज्य विधानसभाओं से पास कराना होगा। जिन राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल बचा हुआ है, उन्हें भंग करना होगा।
ईवीएम-वीवीपैट की होगी जरूरत
ईवीएम और वीवीपैट भी इसके लिए बड़ी चुनौती होगी। लगभग 140 करोड़ देश की जनसंख्या है। अगर इनमें आधे भी मतदाता हैं. तो एकसाथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव के लिए मशीनों की जरूरत पड़ेगी।
अगली बार 750 सीटों पर होगा चुनाव !
एक देश एक चुनाव के साथ यह भी उम्मीद जताई जा रही है कि 2029 में लोकसभा चुनाव 543 की बजाय 750 सीटों पर होगा। दरअसल 2002 के एक परिसीमन के तहत 2026 तक लोकसभा की सीटें बढ़ाने पर रोक लगी है। 2027 में जनगणना होनी है। लिहाजा, परिसीमन भी हो सकता है। परिसीमन का मतलब जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों के निर्धारण से है। अगर, ऐसा हुआ तो जनसंख्या के आधार पर लोकसभा की सीटें बढ़ना तय है।