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उपचुनाव में मुस्लिम-दलित गठजोड़, किसको बनाएंगा सिरमौर!

मोहसिन खान

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नोएडा: नोएडा डेस्क-यूपी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की दूरियां बनाने की ख़बरें लगातार आ रही है, क्योंकि उसका फोकस महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव पर है, क्योंकि हरियाणा के नतीजों के बाद कांग्रेस हर एक कदम को फूंक-फूंक कर रख रही है और शायद यही वजह है कि उसने यूपी विधानसभा उपचुनावों में दिलचस्पी दिखानी बन्द कर दी है। इसलिए कांग्रेस की ओर से इस तरह की बातें सामने आ रही है कि सपा अकेले सभी सीटों पर उपचुनाव लडे और कांग्रेस उसका हर सीट पर समर्थन और मदद करेगी।

अब ऐसे में सवाल उठता है कि लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस को विकल्प के रूप में देखने वाला मुस्लिम मतदाता कहां जाएगा और दलित वोट किस करवट बैठेगा, क्योंकि 24 के चुनावी नतीजे आने के बाद चर्चाएं थी कि सपा को कांग्रेस से गठबंधन करने का फायदा मिला क्योंकि मुस्लिम कांग्रेस के पक्ष में वोट करने के लिए तैयार बैठा था। दूसरी बड़ी बात ये है कि अगर कांग्रेस यूपी विधानसभा उपचुनाव से खुद को दूर रखती है तो शहरी क्षेत्र में कांग्रेस का पंरपरागत ब्राह्रमण वोट और दलित वोट कहां जाएगा और उसका फायदा किसको होगा।

मुश्किल होगा मुस्लिम मतो में बिखराव!

दरअसल लोकसभा चुनाव 2024 से पहले देश और प्रदेश में जो हालात बने थे और अंदर ही अंदर देश का मुसलमान खुद को असुरक्षित महसूस करने लगा था, ऐसे में उसके सामने अपने सियासी रहनुमां को लेकर बड़ी पसोपेश के हालात थे। तभी देश के अंदर राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा लेकर निकले, जिसके बाद मुस्लिम समाज में राहुल गांधी को लेकर ना केवल नजरिया बदला बल्कि उनमें अपना रहनुमां भी दिखाई दिया। राष्ट्रीय राजनीति में मुस्लिम समाज समझ गया कि कांग्रेस के साथ जाने में ही फायदा है, क्योंकि सपा और बसपा का वजूद फिलहाल क्षेत्रों के अलावा देश के अन्य किसी कोने में नहीं है।

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लिहाज़ा मुस्लिमों ने तय कर लिया था कि लोकसभा में कांग्रेस के साथ जाएंगे और उस दल का भी समर्थन करेंगे जो कांग्रेस से गठबंधन करके आएगा, यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच हुआ गठबंधन सोने पर सुहागे का काम कर गया। गठबंधन ने यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 37 सीटों पर जीत दर्ज की, यानि कहीं ना कहीं कांग्रेस से गठबंधन का फायदा कांग्रेस को हुआ, लेकिन सपा ये कहती रही कि उसकी वजह से कांग्रेस यूपी में जिन्द हुई। खैर ये तो राजनीतिक बहस का मुद्दा है, लेकिन अब ये माना जा रहा है कि अगर कांग्रेस खुद को उपचुनाव से दूर रखती है और सपा को उपचुनावों वाली सीटों पर मदद करती है तो ऐसी बहुत कम संभावनाएं होंगी कि मुस्लिम मतों में बिखराव हो जाए, दरअसल बसपा को लेकर मुस्लिम समाज अभी भी आश्वस्त नहीं है कि भविष्य में बसपा को कोई वजूद होगा जबकि चन्द्रशेखर रावण को अभी समय लगेगा तो ऐसे में मुस्लिम वोट बैंक सपा के साथ जा सकता है।

ब्राह्रमण और दलित वोटों में लग सकती है सेंध!

कांग्रेस के उपचुनाव से दूरी बनाने पर एक दूसरी सियासी तस्वीर ये भी निकलकर सामने आ रही है कि शहरी क्षेत्र में ब्राह्रमण और दलित वोटों में बिखराव हो सकता है। क्योंकि कांग्रेस का परंपरागत ब्राह्रमण वोट बैंक कांग्रेस का प्रत्याशी ना होने की वजह से या तो वोट करने के लिए घर से ही नहीं निकलेगा और अगर वो मतदान केन्द्र तक गया तो हो सकता है कि भाजपा या सपा को वोट कर दे, जिससे दोनो के दलों के लिए फायदे और नुकसान का सौदा हो सकता है, जबकि दलित वोट में बसपा, सपा के अलावा आजाद समाज पार्टी भी सेंधमारी कर सकती है।

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