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Pulses Production : दालों के उत्पादन में भारत का नया आयाम, 10 सालों में 60% से ज्यादा वृद्धि, MSP पर 18 गुना हुई सरकारी खरीद!

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Pulses Production : भारत दुनिया भर में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक है। धीरे-धीरे देश खाद्यान्न, दाल, सब्जियों एवं फलों का बड़ा उत्पादक बनता जा रहा है। दालें ख़रीफ और रबी दोनों सीज़न में उगाई जाती हैं। बीते 10 सालों में दालों के कुल उत्पादन में 60 फीसदी (Pulses Production Rate) से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है।

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बता दें कि वैश्विक स्तर पर भारत 25 फीसदी दालों का उत्पादन (Pulses Production Rate Increased) करता है। वहीं वैश्विक खपत का 27 प्रतिशत और 14 प्रतिशत इंपोर्ट करता है। खाद्यान्न के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में दालों की हिस्सेदारी लगभग 20 फीसदी है। देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में इसका योगदान लगभग 7-10 फीसदी है।

4 दिवसीय पल्सेस कन्वेंशन की शुरुआत

दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए गुरुवार को नई दिल्ली में राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ यानी नेफेड (NAFED) एवं ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन (GPC) द्वारा चार दिवसीय पल्सेस कन्वेंशन (Pulses Convention) की शुरुआत की गई। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) एवं उपभोक्ता मामले तथा खाद्य-सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल (Piyush Goyal) द्वारा इसका उद्घाटन किया गया।

दलहन उत्पादन में 60% की वृद्धि

बीते एक दशक में दालों के उत्पादन में 60% और MSP पर इसकी खरीदारी में 18 गुना वृद्धि (60% increase in pulses production) हुई है। वर्ष 2014 में दाल का उत्पादन 171 लाख टन हुआ था, जो अब साल 2024 में 60 प्रतिशत बढ़कर 270 लाख टन हो गया है। देश में कृषि उत्पादन 3320 लाख टन का लक्ष्य है, जिसमें अकेले 292.5 लाख टन दाल उत्पादन का लक्ष्य है।

किसानों और उपभोक्ताओं के लिए भारत दाल लॉन्च

आपको बता दें कि अलग अलग प्रकार के खाद्य उत्पादों के प्रोडक्शन और क्वालिटी में विस्तार का परिणाम है कि भारत 50 अरब डॉलर से अधिक के कृषि एवं संबद्ध उत्पादों का निर्यात कर रहा है।

किसानों को सहारा एवं उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने भारत दाल (Bharat Dal) ब्रांड लांच किया और महज चार महीने में ही बाजार के करीब 25 प्रतिशत हिस्से पर भारत दाल का कब्जा हो गया है।

मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि दलहन में आत्मनिर्भरता के लिए उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों के कारण ही हम एक दशक में चना के साथ कुछ अन्य दलहन में हम आत्मनिर्भर बन चुके हैं। अरहर और उड़द में हुई कमी को 2027 तक पूरा कर लिया जाएगा। नई किस्मों की बीज आपूर्ति के साथ रकबा भी बढ़ाया जा रहा है। रबी सीजन में मसूर के रकबे में एक लाख हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी हुई है।

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