Kanpur: यूपी के कानपुर शहर में आतंक का पर्याय रहे डी-2 गैंग के पहले सरगना अतीक पहलवान (Atik Pahalwan) की आगरा जेल में मौत हो गई। आगरा जेल में बंद अतीक पहलवान ने शनिवार को अंतिम सांस ली। जेल प्रशासन के अनुसार अतीक की हार्ट अटैक से मौत हुई है, फिलहाल आगरा पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम करा परिजनों को शव सौंप दिया। जिसके बाद परिजन शव लेकर दिल्ली रवाना हो गए।
6 भाई मिलकर चलाते थे डी-2 गैंग
नई सड़क निवासी छह भाई अतीक, शफीक, बिल्लू, बाले, अफजाल और रफीक मिलकर डी-2 गैंग चलाते थे। इस गैंग का पहला सरगना अतीक पहलवान ही था जो सबसे बड़ा था। सूत्रों के मुताबिक गिरोह पर हत्या, सुपारी किलिंग, सम्पत्तियों पर कब्जा खाली कराना, मारपीट, जान से मारने का प्रयास, फिरौती, अपहरण के 35 से ज्यादा अपराधिक मामले दर्ज थे।
24 मार्च 2004 में अधिवक्ता मोहम्मद नासिर की हत्या में बीती 31 जनवरी 2024 को अतीक और उसके भाई बाले को आजीवन कारावास की सजा हुई। अतीक पहलवान आगरा जेल में बंद था और इस मामले में वीडियो कानफ्रेंसिंग के जरिए पेश हुआ था।
तत्कालीन DGP ने स्टेट गैंग में कराया था पंजीकृत
अतीक को सन 2007 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया था। यहां से गई पुलिस टीम में ऋषिकांत शुक्ला (वर्तमान सीओ सफीपुर, उन्नाव) को टीम के साथ भेजा गया था। तब से अतीक पहलवान जेल में बंद था और उसके भाइयों ने गैंग की कमान सम्भाल ली थी। उसे सिद्धार्थनगर जेल में ट्रांसफर किया गया था।
सूत्रों के मुताबिक वहां से अतीक फर्जी वारंट कटाकर लखनऊ सुनवाई पर जाता था और एक होटल में बैठकर पंचायत लगाता था। यह सूचना तत्कालीन डीजीपी बृजलाल को मिल गई थी। जिसके बाद उन्होंने इस गैंग को सन 2010-2011 में इंटर स्टेट गिरोह की सूची में 273 नम्बर पर पंजीकृत कराया था।
अपराधी पैदा करने वाली मशीन के नाम से था चर्चित
पुलिस सूत्रों के मुताबिक अतीक पहलवान को अपराधी पैदा करने वाली मशीन कहा जाता था। नई उम्र के लड़कों को अपने भौकाल में लेकर वह उन्हें जरायम के रास्ते पर ले जाता था। उनसे सुपारी किलिंग कराता था। इसके साथ ही वसूली के लिए भी भेज देता था।
दिल्ली से लेकर कोलकाता तक अतीक का नेटवर्क फैला हुआ था। उसने दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ, जयपुर में छिपने के ठिकाने बना रखे थे। उसके धंधे में फाइनेंसर के तौर पर बेंगलुरु का एक तम्बाकू कारोबारी शामिल था, जो उसके हर धंधे में फंडिंग करता था। अतीक पहलवान जेल में बैठकर नए अपराधी तैयार कर देता था ।
ऐसे बढ़ा जरायम की दुनिया में नाम
सन 2004 में कानपुर स्थित हीर पैलेस के सामने माल रोड पर एसटीएफ के सिपाही धर्मेन्द्र की हत्या कर दी गई थी। उसमें भी अतीक और उसके भाई रफीक आदि नामजद हुए थे। तब अतीक का जरायम की दुनियां में नाम और बड़ा हो गया और वसूली भी बढ़ गई थी।
2005-06 में पुलिस टीम ने उसे चाइनीज पिस्टलों संग गिरफ्तार किया था। जब जांच की गई तो पुलिस के भी होश उड़ गए थे। पिस्टल पाकिस्तान के रास्ते मुंबई से होते हुए शातिर के पास कानपुर पहुंची थी। उस दौरान इसके लिंक में मुंबई अंडरवर्ल्ड के भी कुछ शातिरों के बारे में पुलिस को जानकारी मिली थी।
80 के दशक में शुरू हुआ गैंग
डी-2 गैंग ने 80 के दशक में जरायम की दुनिया में कदम रखा था। अतीक की आगरा जेल में, शफीक की भी बीमारी से गोवा में मौत हो चुकी है। बिल्लू को तत्कालीन एसओजी प्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने टीम के साथ गोविंद नगर में एनकाउंटर कर मार गिराया था। अफजाल को भी तत्कालीन एसओजी प्रभारी और उनकी टीम ने एनकाउंटर में मार दिया था। अब गिरोह में बाले और अफजाल रह गए हैं। जो जेल में बंद है।