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पुरुषों को ज्यादा होता है DMD रोग का खतरा, जानें क्यों सुरक्षित हैं महिलाएं

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Duchenne muscular dystrophy in males: मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में बीजेपी नेता संजीव मिश्रा ने परिवार सहित खुदकुशी कर ली. मिश्रा के दो बेटे ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) नामक खतरनाक बीमारी से पीड़ित थे। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। इससे तंग आकर भाजपा नेता ने परिवार समेत सल्फाज खाकर आत्महत्या कर ली। डॉक्टर बताते हैं कि डीएमडी एक खतरनाक बीमारी है। आज तक इसका कोई इलाज नहीं है। दवाओं के जरिए ही लक्षणों को नियंत्रित किया जाता है।

डॉक्टरों के मुताबिक यह बीमारी पांच हजार बच्चों में से एक को ही होती है, लेकिन महिलाओं की तुलना में पुरुषों में इस बीमारी के ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। यानी जन्म के समय लड़कियों की तुलना में लड़कों में DMD का खतरा ज्यादा होता है, लेकिन इसके पीछे क्या कारण है? इस बीमारी के बारे में जानें डॉक्टर की राय।

आर्टेमिस अस्पताल, गुरुग्राम में न्यूरो सर्जरी और साइबरनाइफ सेंटर के निदेशक डॉ. आदित्य गुप्ता बताते हैं कि ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी या डीएमडी एक प्रकार का आनुवंशिक विकार है, जो डायस्ट्रोफिन नामक प्रोटीन में उत्परिवर्तन के कारण होता है। डीएमडी जीन में बदलाव के कारण शरीर में डायस्ट्रोफिन का उत्पादन नहीं होता है। डायस्ट्रोफिन प्रोटीन मांसपेशियों को मजबूत रखता है और चोटों से बचाता है, लेकिन जब कोई जीन इस प्रोटीन का उत्पादन नहीं करता है, तो डीएमडी होता है।

पुरुषों में DMD के मामले अधिक सामान्य क्यों हैं?

डॉ आदित्य गुप्ता डीएमडी महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक प्रभावित करने का कारण यह है कि डायस्ट्रोफिन जीन एक्स क्रोमोसोम पर होता है और पुरुषों में केवल एक एक्स क्रोमोसोम होता है जबकि महिलाओं में दो। चूंकि महिलाओं में दो एक्स क्रोमोसोम होते हैं, वे पुरुषों की तुलना में अधिक डायस्ट्रोफिन का उत्पादन करने में सक्षम होती हैं। इस प्रोटीन के अधिक उत्पादन के कारण महिलाओं में डीएमडी का खतरा पुरुषों की तुलना में काफी कम होता है। यह रोग दो वर्ष की आयु में ही प्रकट होने लगता है। बढ़ती उम्र के साथ लक्षण भी बढ़ते जाते हैं। डीएमडी के लिए कोई इलाज नहीं है। केवल लक्षणों को दवाओं से नियंत्रित किया जाता है।

शरीर के हर अंग को नुकसान पहुंचाता है

वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अजय कुमार बताते हैं कि डीएमडी की बीमारी से न केवल मांसपेशियां बल्कि शरीर के अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचता है। इस रोग के कारण हृदय, हड्डियाँ तथा हड्डियाँ भी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। चिंता की बात यह है कि भारत में इसका कोई इलाज नहीं है। ऐसे में इस बीमारी के मरीजों के सामने जीवन एक चुनौती बन जाता है।

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