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Friday, October 18, 2024
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बच्चों को हर बात पर डांटने की वजह करें ये काम, मानेंगे आपकी हर बात

Time Out Policy: पहले के समय की पेरेंटिंग और आज की पेरेंटिंग में बहुत अंतर है। पुराने समय में माता-पिता अपने बच्चों की एक गलती पर उन्हें डांटते या पीटते थे, जबकि आजकल माता-पिता अपने बच्चों से ऊंची आवाज में बात करने से पहले कई बार सोचते हैं। इसका कारण बच्चों का मानसिक संतुलन है। आजकल छोटे बच्चे भी छोटी-छोटी बातों पर तनाव में आ जाते हैं, ऐसे में माता-पिता बच्चों को ऊंची आवाज में डांटने या उन पर हाथ उठाने से बचते हैं। जबकि पहले के समय में माता-पिता बच्चों को उनकी गलतियों के लिए डांटकर या पीटकर उन्हें सिखाते थे।

पेरेंटिंग वाकई एक मुश्किल काम है, इसका एहसास हमें तब होता है जब हम खुद माता-पिता बनते हैं। तब तक हमें अपने माता-पिता की बातें ताने लगती हैं। लेकिन आजकल कुछ माता-पिता अपने बच्चों को सुधारने के लिए उन्हें डांटने की जगह एक नई तरकीब अपनाने लगे हैं। क्योंकि वे समझ गए हैं कि एक निश्चित समय के बाद बच्चों पर डांटने या पीटने का कोई असर नहीं होता। ऐसे में माता-पिता टाइम आउट तकनीक अपनाने लगे हैं। आइए जानते हैं टाइम आउट तकनीक क्या है और इसकी मदद से आप अपने बच्चों को कैसे नई चीजें सिखा सकते हैं।

टाइम आउट का सिद्धांत क्या है?

टाइम आउट सिद्धांत पेरेंटिंग का एक अनूठा तरीका है जिसमें बच्चे को उसकी गलती के लिए डांटा नहीं जाता बल्कि उसे कुछ समय के लिए एक कमरे में अकेला छोड़ दिया जाता है। जहां उसके पास न तो बात करने के लिए कोई होता है और न ही खेलने की कोई सुविधा। इस स्थिति में बच्चा खुद को सबसे अलग करके अपने बारे में सोच सकता है कि शायद इस गलती की वजह से मुझे ये सजा मिली है। ऐसा करने से वो दोबारा वो गलती करने से बचता है। इतना ही नहीं, उसे सही और गलत का फर्क भी आसानी से समझ में आ जाता है। शांत मन और मस्तिष्क से वो अपने लिए बेहतर सोच पाता है।

टाइम आउट सिद्धांत के क्या फायदे हैं?

1. इससे आपका बच्चा मानसिक रूप से मजबूत बनता है, जो बढ़ती उम्र में उनके लिए काफी मददगार होता है।

2. डांटने या मारने से बच्चा गुस्सैल या हिंसक हो सकता है, जबकि इसके बजाय टाइम आउट सिद्धांत की मदद से आपका बच्चा आसानी से अपनी गलती समझ जाएगा और उसका गुस्सा करने का स्वभाव भी धीरे-धीरे नरम पड़ने लगेगा।

3. टाइम आउट सिद्धांत की मदद से बच्चे आसानी से अपने माता-पिता की बात मानने लगते हैं, वो ज्यादा जिद नहीं करते। इसके साथ ही बच्चे के व्यवहार में भी सकारात्मक बदलाव देखने को मिलता है।

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