एक कहावत है कि भाग्य फले तो सब फले भीख बंज व्यापार अर्थात यदि भाग्य हमारा साथ दे तो हमे भीख मे अशरफिया प्राप्त हो जाए, बंजर जमीन उपजाऊ हो जाए, व हम जिस किसी भी काम या व्यापार मे हाथ डाले वो बहुत सफल हो जाए। भाग्य की महत्ता से कोई अछूता नहीं है सभी के मुँह किस्मत, लक या भाग्य जैसे शब्दों को अकसर सुना जाता है। कोई विशेष सफल हो तो भाग्यशाली कहलाता है और कोई लगातार असफल हो रहा हो तो कहा जाता कि भाग्य साथ ही नहीं दे रहा। यह भाग्य ही है कि कर्ण जैसे योद्धा को भी भाग्य का साथ न मिलने के कारण उतना श्रेय, सफलता और सम्मान न मिल पाया।भाग्य और कर्म मे बहुत गहरा सम्बध है। भाग्य से ही मनुष्य को सफलता, धन, यश आदि प्राप्त होता है।
कुंडली मे नवम भाव के द्वारा ही भाग्य का विचार किया जाता है। इस भाव मे शुभ, पाप, शत्रुक्षेत्री, मित्र ग्रहों, स्वामी आदि के बलाबल से विचार करना चाहिए।
*यदि भाग्य भाव मे कोई ग्रह स्वोच्च, स्वक्षेत्र, मुलत्रिकोण, अतिमित्र या मित्र कि राशि मे हो तो इस भाव की वृद्धि होती है।
*यदि भाग्येश स्वक्षेत्र, या अपने वर्गों मे हो स्वदेश, अन्यथा परदेश मे भाग्य सफल होता है।
*भाग्य भवन से 1,4,5,7,9,10 भाव मे शुभग्रह हो तो भाग्य अनुकूल रहता है।
*सूर्य से 22, चन्द्रमा से 24, मंगल से 28, बुध से 32, गुरु से 16, शुक्र से 25, शनि से 36, राहु से 42, तथा केतु से 48 वर्ष की आयु के बाद भाग्योदय होता है।
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भारतीय ज्योतिष मे भाग्य भवन के स्वामी के अन्य भावो की स्थिति पर विचार किया जाता है जैसे-
भाग्येश लग्न मे. तो भग्यावान, राजमान्य, सौम्य, विधावान, धनवान, जनपूजीत, तथा योग्य होता है।
*द्वितीय भाव मे होने पर चतुर, विद्वान, जनप्रिय, धनवान, कामी, स्त्री, संतान से युक्त होता है।
*तृतीय भाव मे होने पर भाई बाँधावों से युक्त, नौकरो से युक्त, धनवान, पराक्रमी, भाग्यशाली तथा उदार होता है।
*चतुर्थ भाव मे होने पर घर, वाहन युक्त, पुण्यवान, लोकमान्य, माता का सुख लंबे समय तक पाने वाला।
*पंचम भाव मे होने पर जातक, भाग्यवान, पुत्रवान, गुरुभक्ति मे लीन, अपने इष्ट देवता की कृपा को पाने वाला होता है।
*भाग्येश छठे भाव मे होने पर मामा के सुख से रहित या कष्ट पाने वाला शत्रुओ द्वारा सताए जाने वाला होता है।
*भाग्येश सप्तम भाव मे. होने पर स्त्री संपर्क से लाभ प्राप्त करने वाला, कामुक तथा गुणवान होता है।
*भाग्येश अष्टम भाव मे होनें पर दुःख एवं भाग्यहीन होता है।
*भाग्येश भाग्यभाव मे होने पर भाग्यवान, भाइयो से युक्त, शक्तिशाली गुणवान व कीर्तिवान होता है।
*भाग्येश दशम भाव मे होनें पर मनुष्य शासक तुल्य, गुणी व पूजनीय होता है।
*भाग्येश एकादश भाव मे होने पर प्रतिदिन लाभ, कीर्ति, यश एवं धन को प्राप्त करने वाला होता है।
भाग्येश द्वादश भाव मे होनें पर भाग्य का व्यय होता रहता है परंतु सुयोगी होने पर विदेश मे फलता फूलता है।
मुख्यतः भाग्येश षष्ठ, अष्ट, तथा द्वादश भाव मे होने पर जातक भाग्यहीन होता है।
लेकिन ग्रह व भाव को अन्य नियमों से भी चेक करना चाहिए।
दुर्बल भाग्य के लोगो को निम्नलिखित उपचार से लाभ प्राप्त हो सकता है-
1- पुरुषसूक्त व लक्ष्मी सूक्त का पाठ
2- गायत्री मन्त्र का जप
3- रुद्राभिषेक व शिवपूजन अर्चना
4- श्रीविधा का पूजन अर्चना
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