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मराठा आरक्षण की असली वजह आई सामने? चुनाव से पहले BJP-शिंदे की बढ़ी मुश्किलें !

Maratha Reservation: महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव भी सिर पर हैं। प्रदेश में मराठा आरक्षण की मांग लगातार तेजी से बढ़ती जा रही है। इस बीच ‘मराठा बनाम ओबीसी’ की बहस ने महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। महाराष्ट्र की राजनीति का सबसे प्रभावशाली समुदाय माना जाने वाला मराठा समुदाय शिंदे सरकार से नाराज है। शिंदे गुट के दो सांसदों ने भी आरक्षण के समर्थन में अपना इस्तीफा दे दिया है। आंदोलन के बीच सोमवार को कुछ लोगों ने बीड़ जिले के माजलगांव तालुका में एनसीपी के विधायक प्रकाश सोलंके के घर पथराव कर आग लगा दी। जिसके बाद से बीड़ में कर्फ्यू लगा हुआ है और धारा 144 लागू कर दी गई है।

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maratha reservation protest

जानकारी के मुताबिक आंदोलनकारियों ने कुछ जिलों में राज्य परिवहन की बसों पर भी पथराव किया। प्रदर्शनकारियों ने बसों के टायर जलाकर धुले-सोलापुर हाईवे को भी बंद कर दिया। गुस्साए मराठा प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने गए सांसदों और विधायकों को भी गांव में घुसने तक नहीं दिया।

मराठा नेता मनोज जारंगे-पाटिल आरक्षण की मांग को ले कर 6 दिनों से भूख हड़ताल पर हैं। राज्य सरकार के मंत्रियों ने उनसे बात भी की लेकिन उन्होंने कहा है कि जब तक मराठाओं को आरक्षण नहीं मिलता तब तक वो अपनी भूख हड़ताल खत्म नहीं करेंगे। आपको बता दें कि राज्य सरकार ने अभी तक आरक्षण पर अपना फैसला नहीं सुनाया है।

मराठा आरक्षण की असली वजह आई सामने

बता दें कि राज्य में 20 में से 19 मुख्यमंत्री मराठा रहे हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी इसी समुदाय से आते हैं। ऐतिहासिक रूप से मराठा समुदाय के सदस्यों को योद्धाओं के रूप में जाना जाता रहा है। आज के महाराष्ट्र में यह मुख्य रूप से किसानों का समुदाय है, जिनके पास जमीन भी है। लेकिन कई राज्यों के कृषक समुदायों की तरह भूमि जोत के छोटे होने और खेती की कई समस्याओं की वजह से मराठाओं की समृद्धि भी धीरे-धीरे कम हो गई। जिसके कारण समुदाय के सदस्य युवा पीढ़ी के भविष्य को लेकर चिंता में पड़ गए। और इसी चिंता की वजह से 1980 के दशक में पहली बार सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग ने आंदोलन का रूप लिया।

2016 से 2018 तक चले इस आंदोलन में तो कई लोगों को जान भी गवानी पड़ी थी। जिसके बाद राज्य सरकार को मजबूर होकर एक नए कानून के जरिए मराठाओं को 16 प्रतिशत आरक्षण देना पड़ा। लेकिन इससे राज्य में कुल आरक्षित सीटों का प्रतिशत 50 प्रतिशत की सीमा को पार कर गया, जिसके बाद इस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया था। इसके बाद मराठा नेताओं ने मांग की कि उनके समुदाय के सदस्यों को ‘कुनबी’ जाति के प्रमाणपत्र दे दिए जाए। कुनबी जाति महाराष्ट्र की ओबीसी की सूची में आती है जिसकी वजह से उस समुदाय के लोगों को पहले से ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलता है।

महाराष्ट्र के सीएम शिंदे ने मराठा समुदाय के कुछ लोगों को कुनबी प्रमाणपत्र देने का फैसला कर लिया है लेकिन जरंगे-पाटिल की मांग है कि यह प्रमाणपत्र सभी मराठाओं को दिए जाएं।

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