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एक शब्द की ताकत: कैसे सैलून में काम करने वाली एक गरीब लड़की बन गई अमेरिका की सुप्रसिद्ध एक्ट्रेस

एक अमरीकी अभिनेत्री ग्रेटागार्बो का नाम आपने सुना होगा। वह यूरोप के एक छोटे से देश में एक गरीब घर में पैदा हुई। और एक बाल बनाने के सैलून में दाढ़ी पर साबुन लगाने का काम करती रही जब तक उन्नीस वर्ष की थी। दो पैसे में दाढ़ी पर साबुन लगाने का काम नाई की दुकान में करती रही। एक अमरीकी यात्री ने–वह उसकी दाढ़ी पर साबुन लगा रही थी–और आईने में उसका चेहरा देखा और कहा कि बहुत सुंदर है! बहुत सुंदर है!

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ग्रेटा ने उससे कहा, क्या कहते हैं आप? मुझे आज छह वर्ष हो गए लोगों की दाढ़ी पर साबुन लगाते, किसी ने मुझसे कभी नहीं कहा कि मैं सुंदर हूं। आप कहते क्या हैं? मैं सुंदर हूं?

उस अमरीकन ने कहा, बहुत सुंदर! मैंने बहुत कम इतनी सुंदर स्त्रियां देखी हैं।

ग्रेटागार्बो ने अपनी आत्मकथा में लिखा है: मैं उसी दिन पहली दफा सुंदर हो गई। एक आदमी ने मुझे सुंदर कहा था। मुझे खुद भी खयाल नहीं था। मैं उस दिन घर लौटी और आईने के सामने खड़ी हुई और मुझे पता लगा कि मैं दूसरी औरत हो गई हूं!

वह लड़की जो उन्नीस साल की उम्र तक केवल साबुन लगाने का काम करती रही थी, वह अमरीका की बाद में श्रेष्ठतम अभिनेत्री साबित हुई। और उसने जो धन्यवाद दिया, उसी अमरीकी को दिया, जिसने उसे पहली दफा सुंदर कहा था। उसने कहा कि अगर उस आदमी ने उस दिन वे दो शब्द न कहे होते तो शायद मैं जीवन भर वही साबुन लगाने का काम करती रहती। मुझे खयाल ही नहीं था कि मैं सुंदर भी हूं। और हो सकता है उस आदमी ने बिलकुल ही सहज कहा हो। हो सकता है उस आदमी ने सिर्फ शिष्टाचार में कहा हो। और हो सकता है उस आदमी ने कुछ खयाल ही न किया हो, सोचा भी न हो कि मैं यह क्या कह रहा हूं, बिलकुल कैजुअल रिमार्क रहा हो। और उसे पता भी न हो कि मेरे एक शब्द ने एक स्त्री के भीतर सौंदर्य की प्रतिमा को जन्म दे दिया है। वह जाग गई, उसके भीतर जो चीज सोई थी।

जिन लोगों से काम लेना हो उनके भीतर जो सोया है उसे जगाना जरूरी है। इसलिए वे जो हैं, इस पर ध्यान देने की कम जरूरत है; वे जो हो सकते हैं, इस पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है; अगर मित्रों से कोई बड़ा काम लेना हो। नहीं तो काम नहीं लिया जा सकता। अगर मैं कभी मित्रों को कहता हूं कि फलां आदमी से काम लो। मुझे बता दिया जाता है कि वह आदमी बुरा है, वह आदमी बेईमान है, या उस आदमी का भरोसा नहीं किया जा सकता।

यह ठीक है कि आदमी बुरा है, आदमी बेईमान है। कौन आदमी बुरा नहीं? कौन आदमी बेईमान नहीं? लेकिन वह आदमी क्या हो सकता है, सवाल यह है। वह क्या है, यह सवाल ही नहीं है। हमें उसके भीतर उसको पुकार लेना है जो वह हो सकता है, अगर उससे कोई बड़ा काम लेना हो।

गांधी के आश्रम में कृपलानी रसोइये का काम करते रहे। एक अमरीकी पत्रकार आश्रम में ठहरा हुआ था। उसने पूछा कि यह आदमी जे.बी.कृपलानी मालूम होता है जो खाना बनाता है आपका!

कृपलानी बर्तन साफ करते थे, उन्होंने कहा कि यह जो बूढ़ा है, अदभुत है! असल में मैं रसोइये के योग्य ही था। और इस आदमी ने मेरे भीतर वह जगा दिया जिसका कोई हिसाब नहीं!

छोटे-छोटे आदमी के भीतर जादू घटित हो सकता है। एक दफा हम उसे पुकारें और उसकी आत्मा में जो सोया है उसे निकट लाएं, उस पर विश्वास करें। उसके भीतर जो सोया है उसको आवाज दें, उसको चुनौती खड़ी करें। उसके भीतर बहुत कुछ निकल सकता है। और एक बड़े से बड़े आदमी को हम निराश कर सकते हैं। एक श्रेष्ठतम व्यक्ति को हम कह सकते हैं कि तुम कुछ भी नहीं हो। और अगर दस-पांच दफा सब तरफ से उसे यही सुनाई पड़े कि वह कुछ भी नहीं है, तो निश्चित मानना वह कुछ भी नहीं हो जाएगा।

ओशो…🌹

सुमित विजयवर्गीय

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