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उत्तरकाशी टनल रेस्क्यू ऑपरेशन के असली हीरो ने कैसे दिया ऑपरेशन को अंजाम

उत्तरकाशी की टनल (Uttarkashi tunnel rescue update) में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए पहले भारत की मशीनों से खुदाई की गई, काम नहीं बना तो विदेशी मशीनें लाई गई लेकिन वो भी फेल हो गई. फिर हुई 6 योद्धाओं की एंट्री,. रेस्‍क्‍सू साइट पर उनकी एंट्री कुछ वैसे ही हुई, जैसे फिल्‍म में हीरो की होती है. सब मामला फंस जाने पर हीरो आता है और सब ठीक कर देता है. उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने में इन माइनर्स की भूमिका किसी नायक सरीखी ही है. इनकी मेहनत रंग लाई. तमाम बड़े नामों के बीच इन्हें जरूर याद करिए. यही हैं, उत्तरकाशी टनल रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन के ‘असली हीरो.

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इन रैट माइनर्स को प्राइवेट कंपनी ट्रेंचलेस इंजिनियरिंग सर्विसेज की ओर से बुलाया गया था. ये दिल्‍ली समेत कई राज्यों में वाटर पाइपलाइन बिछाने के समय अपनी टनलिंग क्षमता का प्रदर्शन कर चुके हैं. उत्‍तरकाशी में इनके काम करने का तरीका ‘रैट होल’ माइनिंग से अलग था. इस काम के लिए केवल वही लोग बुलाए गए थे जो टनलिंग में माहिर हैं.

6 लोगों की टीम ने ऐसे किया काम

यहां पर 6 लोगों की ये टीम ड्रिल मशीनों के साथ पहुंची. इन्‍हीं की मदद से मलबे की खुदाई कर रास्ता बनाया गया. 2 रैट माइनर्स पाइपलाइन में जाते थे. एक आगे का रास्ता बनाता था और दूसरा मलबे को ट्रॉली में भरता था.

बाहर खड़े चार लोग पाइप के अंदर से एक बार में 6-7 किलो मलबे वाली ट्रॉली को बाहर खींचते थे. अंदर के दो लोग जब थक जाते थे तो बाहर से दो अंदर जाते थे.

रेस्क्यू टीमें एक साथ कई प्लान के साथ मजदूरों को बाहर निकालने के लिए काम कर रही थी. इनमें हॉरिजेंटल के साथ वर्टिकल ड्रिलिंग भी शामिल रही. मजदूरों को निकालने के लिए लगी ऑगर मशीन के फेल होने के बाद वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू की गई थी. इसके लिए बीआरओ ने सुरंग के ऊपर तक सड़क बनाई थी. उसके बाद मशीन को ऊपर लगाया गया. मशीन ने कुल 42 मीटर तक खुदाई की और टोटल 86 मीटर की खुदाई होनी थी. जिसके बाद रैट माइनर्स ने पूरी खुदाई की.

रैट माइनिंग क्या है?

अब आप सोच रहे होंगे कि ये रैट माइनिंग क्या बला है. दरअसल रैट होल माइनिंग में खुदाई करने वाले मजदूर कोयला या खनिज निकालने के लिए संकरे बिलों के जरिए अंदर जाते थे. जैसा कि नाम से समझ आता है, ये तकनीक चूहों के बिल खोदने की तरह काम करती है. इसमें माइनिंग करने वाले लोग चार फीट खुदाई करके ऐसे गड्ढों में घुसते, जहां एक इंसान के ही जाने की जगह हो. जैसे-जैसे गड्ढा गहरा होता, वे बांस की सीढ़ी और रस्सियों के सहारे नीचे जाते और फिर कोयला जमा करते.

रैट होल माइनिंग के भी दो तरीके होते हैं. पहला तो साइड कटिंग मैथड में श्रमिक पहाड़ी ढलानों में सुरंगों की खुदाई करते, जब तक कि अंदर उन्हें कोयले की परत न मिल जाए. मेघालय की पहाड़ियों में ये 2 मीटर जितनी दूरी पर हो जाता था. दूसरा तरीका ज्यादा मेहनत वाला, और उतना ही खतरनाक भी था, जिसमें वर्टिकली खुदाई होती.

चूंकि सुरंगों का साइज छोटा होता था, तो इसमें जाने के लिए कई बार महिलाओं, यहां तक कि छोटे बच्चों को काम पर लगा दिया जाता. वे घुटनों के बल भीतर रेंगकर कोयला निकालने का काम करते. इसके खतरों को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस प्रैक्टिस पर पाबंदी लगा दी. अब कोई भी वैध माइन इस तरह का काम नहीं कर सकती थी. NGT ने साफ कह दिया कि ये तरीका न तो प्रैक्टिकल है, और न ही सेफ.

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