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Utarkashi टनल में क्या नियमों की अनदेखी की गई? क्या कहते हैं एक्सर्ट

उत्तरकाशी में टनल से मजदूरों को 17 दिन की कड़ी मशक्कत करके बाहर निकाला गया. लेकिन ये मजदूर आखिर फंसे कैसे. इस टनल का निर्माण हैदराबाद की नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड कर रही है. जिस पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. एक्सपर्ट्स की मानें तो सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग में सबसे बड़ी खामी ये थी कि इसमें कोई एस्केप रूट नहीं बनाया गया था. इसे बनाने वाली कंपनी ने सेफ्टी एग्जिट रूट नहीं बनाया. नियम ये है कि जो भी सुरंग 3 किलोमीटर से ज्यादा लंबाई की हो, उसमें एस्केप रूट बनाना जरूरी होता है. ताकि किसी हादसे के समय उसमें मौजूद लोग सुरक्षित निकल सकें. साइट पर जांच करने पर पता चला कि सुरंग के लिए एस्केप रूट बनाने की योजना थी, लेकिन बनाया नहीं गया.

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ऐसे एस्केप रूट के जरिए सुरंग में किसी भी तरह के हादसे से लोगों को बचाया जा सकता है. सुरंग के नक्शे को देखने से पता लगता है कि 400 मीटर की कॉन्क्रीट फॉल्स फ्लोर तैयार करके एस्केप रूट बनाना था. जिसमें पाइप की रूफिंग होनी थी. लेकिन ऐसी कोई फ्लोरिंग या रूट इस पूरे सुरंग में नजर नहीं आ रहा है.

सुरंग की जांच करने पर पता चलता है कि वहां पर कोई ट्रेंच केज या सेफ ट्यूब जैसी चीज नहीं है. जिसके जरिए मजदूर हादसे की स्थिति में सुरक्षित बाहर निकल सकें. सुरंग के धंसने की स्थिति में ट्रेंच केज मजदूरों की जान बचाने के लिए सबसे जरूरी तरीका साबित हो सकते थे. सुरंग के डिजाइन में भी इस चीज का जिक्र नहीं है.

इससे पहले मजदूरों ने NHIDCL के अधिकारियों पर सुरक्षा मानकों की अनदेखी का आरोप लगाया था. विरोध किया था. हाल ही में जो वीडियो आए हैं, उन्हें देख कर लगता है कि अब रेस्क्यू करने वाले लोग ट्रेंच केज का इस्तेमाल करके ही मजदूरों को बचाने का प्रयास कर रहे थे.

SOP को फॉलो नहीं किया गया!

सुरंग के खनन में जो स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) होता है, उसे लेकर दुविधा नजर आई. सुरंग को बनाने के लिए जो गाइडलाइंस हैं, उनमें रैपिड इवेक्यूएशन की व्यवस्था नहीं है. हालांकि अधिकारियों का कहना है कि सिर्फ रेलवे के पास ही यह व्यवस्था है कि सुरंग में छोटी एस्केप सुरंगें बनाई जाएं. जिनमें सीढ़ियां हों. ताकि आपदा में आसानी से बचाव हो सके. दो लेन वाली सुरंग को लेकर SOP में दुविधा दिखाई पड़ी.

मजदूरों ने बताया कि पिछले हादसे के बाद ह्यूम पाइप लगाई गई थी. लेकिन बाद में वह भी हटा दी गईं. जबकि उन्हें सुरंग पूरा होने तक लगे रहना था. ह्यूम पाइप कॉन्क्रीट की ट्यूब्स होती हैं, जो सुरंग बनने के समय उसके एक छोर से दूसरे छोर तक बिछाई जाती हैं, ताकि इमरजेंसी में उनके जरिए मजदूरों को निकाला जा सके. साथ ही इन पाइप्स के जरिए जहरीली गैस लीक को भी निकाला जाता है. क्योंकि अक्सर सुरंगों के खनन में इस तरह के गैस लीक की आशंका बनी रहती है.

हिमालय के पहाड़ सबसे युवा

यह पूरी दुनिया को पता है कि हिमालय सबसे नए पहाड़ है. युवा है. नाजुक हैं. सबसे ज्यादा फॉल्ट्स यहीं हैं. सबसे ज्यादा भूकंप भी यहीं आते हैं. जबकि यूरोप के एल्प्स के पहाड़ हिमालय की तुलना में काफी ज्यादा पुराने हैं. अब सवाल ये उठता है कि ऐसे नाजुक पहाड़ों पर लगातार सड़कें, सुरंगें और बांध बनाना क्या उचित है? वैज्ञानिक कई बार इस बात पर जोर डाल चुके हैं कि हिमालय पर किसी भी तरह का अवैज्ञानिक निर्माण नुकसान पहुंचा सकता है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?

11 ट्रेड यूनियन्स और सेक्टोरल फेडरेशन ने सिल्क्यारा सुरंग के निर्माण में हुई विफलताओं पर नाराजगी जाहिर की है. यूनियन का कहना है कि कार्यक्षेत्र में किसी तरह का हादसा होने का मतलब है नियमों की अनदेखी की गई. इससे कर्मचारियों की जान आफत में रहती है. सिल्क्यारा में हुआ हादसा भी इसी अनदेखी का नतीजा है.

इंटरनेशनल टनल एक्सपर्ट अर्नॉल्ड डिक्स ने कहा कि एस्केप टनल की जरूरत फिलहाल नहीं थी. क्योंकि पूरी दुनिया में जब भी जहां भी सुरंग बनती है, हम ये मानकर चलते हैं कि ये गिरेगी नहीं. वो भी इस तरह से तो नहीं. यह अलग प्रकार का हादसा है. एस्केप टनल हमेशा बाद में बनाए जाते हैं. ताकि ऐसे हादसे हो तो लोग उससे बाहर निकल सके. निर्माण के समय एस्केप रूट या टनल नहीं बनाए जाते.

कैसी है उत्तरकाशी की भौगोलिक स्थिति?

जियोलॉजिस्ट के मुताबिक, इस इलाके में 1803 में 7.8 तीव्रता और 1991 में 7 तीव्रता का भूकंप आया था. यहां पर भूकंपीय गतिविधिया बहुत ज्यादा होती हैं. जहां तक बात है सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग की, तो इसके नीचे ही बड़कोट थ्रस्ट है. यानी एक प्रमुख फॉल्ट लाइन. यहां पर सुरंग की स्थिरता पर भरोसा नहीं कर सकते.

प्रो. राजेंद्रन ने कहा कि जिस जगह जमीन के अंदर भूकंपीय फॉल्ट हो. जहां लगातार भूकंप के झटके आते रहते हों. जो भूकंप के खतरों से किसी भी समय हिल सकता हो. ऐसी जगह पर इस तरह का सुरंग बनाना खतरे से खाली नहीं है. ऐसी जगह को शीयर जोन (Shear Zone) कहते हैं. यानी वो जगह जो धरती के मेंटल और क्रस्ट के बीच बेहद पतली परत होती है. यह स्थिर नहीं होती. यहां जोन के दोनों तरफ पत्थर तेजी से खिसकते रहते हैं.

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