मोहसिन खान
यूपी (बलिया): बलिया पुलिस को अचानक क्या हो गया, कानून व्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी को छोड़कर पुलिस वालों ने हाथों में कैमरा और माइक आईडी को थाम लिया और बस उसके बाद शुरू कर दी खाकी वालों ने पत्रकारिता, वर्दी वाले भाईसाहब क्यों मीडिया वालों के पेट पर लात मार रहे हो, क्यों उनका काम खुद करने पर तुले है, कहीं ऐसा ना हो जाए भाईसाहब की वो वाली कहावत सटीक साबित हो जाए, ‘जिसका काम उसी को साझे, दूजा करें तो लाठा भाजे, कहावत इसलिए कह रहे है क्योंकि आप जो करेगो वो अधूरी होगी और ऐसे में खबर कैसे पूरी होगी, क्या हो गया आपको कि मीडिया से दूर भाग रहे है, क्या गम है जिसको छिपा रहे हो, कुछ बताया होता, साथ बैठकर कुछ हल तो निकाला होता, लेकिन आप तो मीडिया हाउस से दो कदम आगे ही निकल गए, पुलिसिया चैनल की लॉचिंग भी रातो-रात ही कर ली, पुलिस को लोगो लगाकर चमचमाती माईक आईडी भी लांच कर दी, भई वाह क्या बात इसे कहते है पुलिस के खबरिया चैनल की लांचिंग, ना कोई प्लानिंग, ना कोई ब्रांडिंग बस उतर आए मीडिया इंडस्ट्री
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पत्रकारों से क्यों घबरा रहे है पुलिसकर्मी!
बलिया पुलिस के पत्रकारिता वाले गेटअप को देखकर तो यही लगता है कि खाकी अब कलम से घबरा रही है.. सच सामने ना आ जाए इसलिए पत्रकारों के सवालों का जवाब देने से भी कतरा रही है, निर्भीक और निडर पत्रकार सवाल करेगा तो फिर सच सामने आएगा, डियूटी की आड़ में तिगडमबाज़ी करने वाले भी बेनकाब होंग और बलिया में कुछ महीने पहले हुआ भी ऐसा ही.. खनन माफियाओं के साथ पुलिस के गहरे तार जुडे थे, बेनकाब हुए तो पत्रकारों ने सवाल किए और खाकी खामोश होकर खड़ी हो गई। कहना पड़ेगा कि बलिया पुलिस ने पत्रकारों के सवालों से बचने के लिए क्या अनोखा तरीका निकाला है…यहां एक सवाल भी खड़ा हो जाता है कि क्या इस तरह से केवल बाइट कनवे करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के ‘लोगो’ का इस्तेमाल किया जा सकता है और बलिया पुलिस को किसने ये माइक आईडी लांच करने की इजाज़त दे दी।