Hamirpur land scam: हमीरपुर में सामने आया एक बड़ा घोटाला प्रशासनिक तंत्र की सच्चाई को उजागर करता है। जिलाधिकारी आवास और उससे सटी लगभग 58.14 एकड़ मूल्यवान कृषि भूमि को लेकर भारी फर्जीवाड़े का मामला दर्ज किया गया है। इस जमीन की कीमत लगभग 1000 करोड़ रुपये आंकी गई है। आरोप है कि इसे अकृषिक दर्शाकर विपक्षियों को अवैध रूप से लाभ पहुंचाने के लिए कई सरकारी अधिकारियों ने फर्जी दस्तावेज तैयार कराए। इस मामले में तत्कालीन एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, लेखपाल समेत कुल 13 लोगों पर केस दर्ज हुआ है।
SDM सदर सुक्रमा प्रसाद विश्वकर्मा की शिकायत पर Hamirpur पुलिस ने धोखाधड़ी, जालसाजी, आपराधिक षड्यंत्र सहित IPC की सात गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया है। जिन अधिकारियों पर आरोप हैं, वे 2004 से 2007 के बीच हमीरपुर की सदर तहसील में तैनात थे। रिपोर्ट में विशेष रूप से पूर्व एसडीएम विजय कुमार गुप्ता, तहसीलदार, नायब तहसीलदार जैनेंद्र सिंह और सदर लेखपाल की भूमिका संदिग्ध बताई गई है।
जांच में यह भी सामने आया कि विपक्षियों ने दावा किया था कि जिलाधिकारी आवास उनकी पुश्तैनी ज़मीन पर बना है। इस दावे को मजबूत करने के लिए आरोपियों ने अफसरों की मिलीभगत से कूटरचित अभिलेख तैयार करवा लिए। इन जाली दस्तावेजों के आधार पर जमीन को गैर-कृषि घोषित करने और कब्जा दिलाने की कोशिश की गई। कोर्ट में सही दस्तावेज जानबूझकर नहीं प्रस्तुत किए गए ताकि विपक्षियों को फायदा मिल सके।
FIR में कानपुर, लखनऊ, वाराणसी और हमीरपुर के कई प्रभावशाली लोगों को नामजद किया गया है, जिनमें रमेश कुमार सिंघल, जानकीशरण सिंघल, विवेक कुमार, विशाल सिंघल, आनंदेश्वर अग्रवाल आदि शामिल हैं।
गौरतलब है कि यह Hamirpur ज़मीन ऐतिहासिक महत्व भी रखती है। रिपोर्ट के मुताबिक 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद इस ज़मीन को ब्रिटिश हुकूमत ने जब्त किया था। 1932 में इसे राजस्व विभाग को सौंपा गया और तब से यह सरकारी कब्जे में रही है।
फिलहाल मामला हाईकोर्ट में लंबित है और Hamirpur पुलिस द्वारा जांच जारी है। यह घोटाला दिखाता है कि किस तरह सरकारी अफसर भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बनकर जनता की संपत्ति का दोहन करने में लगे हैं।