मोहसिन खान
गाज़ियाबाद-अतुल गर्ग के सांसद बनने के बाद खाली हुई गाज़ियाबाद सदर सीट पर भी सभी की नज़रें टिकी हुई है, 2017 और 2022 के चुनाव में भाजपा के खाते में रही हॉट सीट गाजियाबाद सदर सीट को लेकर हाल-ए-उपचुनाव में विश्लेषण, बता दें कि 2017 में अतुल गर्ग विधायक चुने गए और योगी सरकार के पहले कार्यकाल में राज्यमंत्री भी बने।
2022 में पार्टी ने उन पर फिर से भरोसा जताया और जनता ने उनको विधायक चुनकर विधानसभा में भेज दिया। 24 के लोकसभा चुनाव में स्थानीय प्रत्याशी की डिमांड पर जनरल वीके सिंह का टिकट काटकर अुतल गर्ग को टिकट दिया और वो चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंच गए। लेकिन अगर दो विधानसभा चुनाव की बात करें तो गाजियाबाद सदर सीट भाजपा के पास रही और अब उपचुनाव के जरिए बीजेपी हैट्रिक लगाने के लिए पिच तैयार कर रही है।
गाज़ियाबाद सदर सीट का इतिहास
दरअसल गाज़ियाबाद सदर सीट के परिसीमन से पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में सुनील शर्मा बीजेपी से विधायक बने और इसके बाद 2012 में बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरें सुरेश बंसल ने अतुल गर्ग को करीब 12 वोटों से हरा दिया था, लेकिन 2017 में पासा पलट गया और अतुल गर्ग चुनाव जीत गए और उनकी जीत का ये सिलसिला 2022 में भी बरकरार रहा। जबकि 1957 और 1962 में कांग्रेस के तेजा सिंह, 1967, 69 और 74 में अलग-अलग दलों से प्यारेलाल शर्मा, 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर राजेंद्र चौधरी, 1980 में कांग्रेस (यू) से सुरेंद्र कुमार मुन्नी, 1985 में कांग्रेस से केके शर्मा और फिर 1989 में कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार मुन्नी विधायक चुने गए।
गाज़ियाबाद सदर सीट पर ‘दलित-मुस्लिम’ फैक्टर
ऐसा माना जाता है कि अगर गाजियाबाद सदर सीट पर दलित मुस्लिम का कॉकटेल बन जाए और एक तरफा वोट हो जाए तो फिर बड़ा उलटफेर हो जाता है। 2012 के चुनाव में दलित मुस्लिम समीकरण का बडा असर दिखाई दिया था और बसपा के सुरेश बंसल विधायक चुने गए थे। यहां पर दलित और मुस्लिम मिलाकर एक लाख से ज्यादा वोटर है, जिसमें विजय नगर समेत कुछ इलाकों में दलित वोटर है और कैलाभट्ट, चमन कॉलोनी, मिर्जापुर मुस्लिम बाहुल्य है। आंकडों पर नज़र डाले तो दलित वोटर्स की संख्या 75 हजार से ज्यादा है और इस सीट पर 50 हजार से ज्यादा ब्राह्मण वोट, वैश्य 35 हजार, मुस्लिम वोटर 33 हजार हैं, ठाकुर वोटर्स की संख्या 25 हजार से ज्यादा, पंजाबी वोटर 12 हजार और यादव वोटर 11 हजार के आसपास है।