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‘डेवलपर के अनुरोध पर 30 दिन में फैसला नहीं, तो समझो हो गया रजिस्ट्रेशन’

प्रोजेक्ट्स के रजिस्ट्रेशन से जुड़े मामलों में UPRERA की लेटलतीफी पर HC का आदेश

 

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Prayagraj (यूपी)। यदि नये प्रोजेक्ट्स का रजिस्ट्रेशन करने के लिए डेवलपर आवेदन करते हैं, और उत्तर प्रदेश रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (UPRERA) 30 दिन के भीतर इस पर कोई एक्शन नहीं लेता है तो मान लिया जाए कि प्रोजेक्ट का रजिस्ट्रेशन हो गया है। ये फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया है। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि रियल एस्टेट अधिनियम, 2016 (RERA) के तहत मान लेना चाहिए कि यह काल्पनिक है। न्यायालय ने आदेश में कहा है कि यदि रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण वैधानिक अवधि (30 दिन) के भीतर किसी परियोजना के पंजीकरण पर निर्णय लेने में विफल रहता है, तो परियोजना को कानून द्वारा पंजीकृत माना जाएगा।

इस मामले में सुनाया फैसला

यह मामला एक रियल एस्टेट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के इर्द-गिर्द केंद्रित था, जिसके लिए डेवलपर ने RERA अधिनियम के तहत पंजीकरण के लिए आवेदन किया था। आवश्यक दस्तावेज जमा करने के बाद, डेवलपर को UPRERA की ओर से कई बार देरी का सामना करना पड़ा। सभी आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा करने और आपत्तियों का जवाब देने के बावजूद, अनिवार्य 30-दिन की अवधि के भीतर पंजीकरण प्रदान नहीं किया गया। यह फैसला उत्तर प्रदेश रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (UPRERA) और एक डेवलपर से जुड़े इसी मामले में आया, जिसने एक रियल एस्टेट परियोजना के लिए पंजीकरण की मांग की थी। 30 दिन तक प्राधिकरण ने डेवलपर के आवेदन पर कोई फैसला नहीं किया। जब अवधि बीत जाने पर डेवलपर ने अपने प्रोजेक्ट के संबंध में प्रचार करना शुरू कर दिया तो प्राधिकरण ने उसे नोटिस भेज दिया।

ये कहना था डेवलपर का

RERA अधिनियम की धारा 5(2) के तहत यदि प्राधिकरण 30 दिनों के भीतर आवेदन को अस्वीकार नहीं करता है, तो पंजीकरण स्वचालित रूप से प्रदान किया गया माना जाता है। डेवलपर ने कहा कि UPRERA ने स्पष्टीकरण मांगना जारी रखते हुए और वैधानिक अवधि  बीत जाने के बाद भी पंजीकरण देने से इनकार करके अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया।

अदालत ने ये भी कहा

अपने फैसले के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने RERA के कामकाज, डेवलपर्स और घर खरीदने वालों के लिए कुछ अहम बातें कहीं। बेंच ने कहा कि RERA अधिनियम की धारा 5(2) के तहत डीमिंग फिक्शन अनिवार्य है। इसे विनियामक देरी को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है। साथ ही ये भी कोशिश है कि रियल एस्टेट प्रोजेक्ट प्राधिकरण की लापरवाही के कारण रुके नहीं। बेंच ने कहा कि एक बार डीमिंग प्रावधान लागू हो जाने के बाद प्राधिकरण के पास उसके बाद आवेदन को अस्वीकार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। अदालत ने UPRERA की कार्रवाई में देरी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि UPRERA ने वैधानिक समयसीमा का पालन न करते हुए कई अनुरोधों के बावजूद, 30-दिन की तय अवधि में कार्रवाई नहीं की, जिससे प्रभावी रूप से डीमिंग प्रावधान लागू हो गया। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि डेवलपर को पिछले भूमिधारक को सह-प्रवर्तक के रूप में शामिल करने की आवश्यकता नहीं है। इसने स्पष्ट किया कि डेवलपर ने सभी आवश्यक अधिकार प्राप्त कर लिए हैं, और वह परियोजना का एकमात्र प्रमोटर है।

बेंच का अंतिम फैसला

बेंच ने डेवलपर के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि जब UPRERA 30-दिन की अवधि के भीतर कार्य करने में विफल रहा, तो प्रोजेक्ट के लिए पंजीकरण प्रदान किया गया माना गया। बेंच ने UPRERA को डेवलपर को आवश्यक पंजीकरण विवरण देने के भी निर्देश दिए, ताकि वो अपने प्रोजेक्ट को आगे बढ़ सके।

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