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अब TB के इलाज में नहीं कम होगी आंखों की रोशनी, डॉक्टर्स ने ढूंढ निकाला ये तरीका!

Now the treatment of TB will not reduce eyesight, doctors have found this method!

Kanpur News : अधिकतर आपने देखा होगा कि जो टीबी (TB) के मरीज है, उनका इलाज यदि काफी लंबे समय तक चलता है। ऐसे मरीजों की आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है। क्योंकि टीबी (Tuberculosis) के मरीजों को एक दवा ऐसी दी जाती है जो कि उनके आंखों की नसों में असर करती है। जब कोई दवा आंखों की नसों में असर करती है तो धीरे-धीरे नस सूखने लगती है और फिर आंखों का विजन (रोशनी) कम होने लगता है। ऐसे लोगों का विजन वापस आना असंभव था, लेकिन कानपुर मेडिकल कॉलेज की एक शोध ने इसको भी संभव बना दिया है।

टीबी की दवा आंखों को पहुंचाती है नुकसान

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कानपुर मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. परवेज खान ने बताया कि जो मरीज टीबी की बीमारी से पीड़ित होते थे, उन्हें एथेमब्युटोल दवा देना जरूरी होता था, लेकिन यह दवा कहीं ना कहीं उन्हें काफी नुकसान पहुंचा रही थी। ओपीडी में रोजाना एक से दो मरीज ऐसे जरूर आते हैं। एक महीने में लगभग 30 से 35 मरीज का आना आम बात है, तो ऐसे मरीजों के विजन को कैसे वापस लाएं इसको लेकर पिछले 7 सालों से स्टडी चल रही थी, लेकिन अब जाकर इसमें सफलता मिली है।

पेंटॉक्सिफाइलाइन दवा ने किया असर

डॉ. परवेज खान के नेतृत्व में काम कर रही डॉ. इंदु यादव ने इस रिसर्च को आगे बढ़ाया है। परवेज खान ने बताया कि इस रिसर्च में डॉ. इंदु यादव ने कई तरह के मरीजों को लिया। इसके बाद उन पर अलग-अलग दवा का प्रयोग किया, लेकिन पेंटॉक्सीफाइलाइन ने जो असर दिखाया वह काफी अच्छा साबित हुआ। पिछले 6 महीने के अंदर 20 मरीजों की आंखों की रोशनी वापस आ गई है। शत प्रतिशत तो नहीं, लेकिन 80 प्रतिषत विजन मरीजों का लौट आया है।

पूरे देश में कहीं नहीं है इसका इलाज

डॉ. परवेज खान ने दावा किया है कि इस बीमारी का अभी तक पूरे देश में कोई भी इलाज नहीं था, क्योंकि जब आंखों की नसें सूख जाती थी तो उस पर दवा का असर भी खत्म हो जाता था, लेकिन पेंटोक्सिफाइलाइन दवा बहुत ही सस्ती और पुरानी दवा है। यह टीबी मरीजों की आंखों के लिए रामबाण साबित हुई है। इस शोध को हम लोग आगे पब्लिश भी करने जा रहे हैं। पिछले 7 सालों के अंदर जो भी स्टडी की है, उसमें बहुत सी छोटी-छोटी चीज भी हम लोगों को मिली है। उस पर भी आगे काम किया जाएगा।

पहले कलर बदलता, फिर विजन कम होने लगता

डॉ. परवेज खान ने बताया कि ऐसे मरीजों में कुछ लक्षण भी दिखाई देने लगते है। शुरुआती समय में मरीज को कलर पहचानने में दिक्कत होती है। फिर जैसे-जैसे नसें कमजोर पड़ने लगती हैं, वैसे-वैसे आंखों की रोशनी भी कम होने लगती है। एक समय आता है कि मरीज को दिखना बिल्कुल कम हो जाता है। यह नसें ऐसी होती हैं जिस पर कोई भी दवा अंदर जाकर असर नहीं कर पाती थी। इसका इलाज भी अभी तक कहीं नहीं है, लेकिन कानपुर मेडिकल कॉलेज में इसका इलाज संभव हो पाया है।

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