Kanpur News : कानपुर में आईएमए द्वारा आयोजित सीएमई प्रोग्राम में जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. एसके कटियार ने नेबुलाइज़ेशन के बदलते परिदृश्य पर महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नेबुलाइज़र एक प्रभावी श्वसन चिकित्सा है, लेकिन जानकारी के अभाव में इसके दुरुपयोग से इसके प्रभाव में कमी आ सकती है और इससे स्वास्थ्य पर जोखिम बढ़ सकते हैं। डॉ. कटियार ने यह भी बताया कि घरों में इस्तेमाल होने वाले 60-70 फीसदी नेबुलाइज़र बैक्टीरिया और फंगस से दूषित होते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में नेबुलाइज़र की सफाई पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
निदान में देरी से बढ़ सकती हैं जटिलताएं
सीएमई प्रोग्राम के दूसरे सत्र में डॉ. एके श्रीवास्तव, डॉ. सुधीर चौधरी, डॉ. अर्जुन भटनागर और डॉ. चमनप्रीत गांधी ने अध्यक्षता की। इस सत्र में डॉ. संदीप कटियार ने अनुत्तरदायी और बार-बार होने वाले प्लूरल इफ्यूजन पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि निदान में देरी से गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं और इनका इलाज करने में कठिनाइयाँ हो सकती हैं। इसके अलावा, डॉ. कटियार ने मेडिकल थोरेकोस्कोपी जैसी आधुनिक तकनीकों पर भी चर्चा की, जो बाह्य रोगी स्तर पर आसानी से की जा सकती है और इसकी सफलता दर काफी अधिक है।
टीबी की बढ़ती चुनौती पर विशेषज्ञों की राय
तीसरे सत्र में ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (MDR-TB) और एक्सटेंसिवली ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (XDR-TB) पर पैनल चर्चा आयोजित की गई। विशेषज्ञों ने इस बढ़ती चुनौती पर चिंता जताई और बताया कि भारत वैश्विक MDR-TB के भार का 25 प्रतिशत हिस्सा रखता है। इस सत्र में डॉ. नंदिनी रस्तोगी, डॉ. विकास मिश्रा और डॉ. अनुराग मेहरोत्रा जैसे प्रमुख चिकित्सक मौजूद रहे। उन्होंने ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के इलाज में आने वाली चुनौतियों और समाधान पर विस्तार से चर्चा की।
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स्वास्थ्य सेवाओं में जागरूकता का महत्व
इस कार्यक्रम ने एक बार फिर यह साबित किया कि स्वास्थ्य सेवाओं में जागरूकता और तकनीकी सुधार कितने महत्वपूर्ण हैं। डॉ. कटियार और अन्य विशेषज्ञों ने नागरिकों को नेबुलाइज़र और टीबी जैसी गंभीर बीमारियों के बारे में सही जानकारी देने की आवश्यकता पर जोर दिया।