रिपोर्ट- वर्षा शाही/मोहसिन खान
लखनउ: उर्दू के शेर की एक लाइन है ‘वो दिन हवा हुए, जब पसीना गुलाब था’ और अब सटीक साबित होगा उत्तर प्रदेश की जेलों में, क्योंकि डीजी जेल पीवी रामाशास्त्री के बाद अब यूपी की जेलों में ना बंदियों की मनमानी चलेगी और ना ही सुविधा शुल्क के जरिए मनचाही बैरक मिलेगी। दरअसल डीजी जेल ने तिहाड़ जेल की तर्ज पर बंदियों को अल्फाबेटिकल ऑर्डर में रखने का आदेश जारी कर दिया है। यानि की अब नाम के पहले अक्षर से ही बंदियों को बैरक में रखा जाएगा और यूपी की जेलों में इस नई व्यवस्था को लागू कर दिया गया है, इसके साथ ही ये भी व्यवस्था की गई है कि अगर किसी एक ‘अक्षर’ वाले नाम के बंदियों की संख्या ज्यादा है तो उसके लिए अतिरिक्त बैरक का बंदोबस्त किया जाएगा। बता दें कि समय-समय पर प्रदेश के सभी ज़िला कारागार का औचक्क निरीक्षण किया जाएगा और परखा जाएगा कि नई व्यवस्था को धरातल पर उतारा गया है या नहीं और अगर कहीं आदेश का पालन नहीं होता है तो संबधित जेल अधीक्षक के खिलाफ़ विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
इन बंदियों को मिलेगी ‘अल्फाबेटिकल’ बैरक से छूट
यूपी की जिला जेलों में बंद महिला बंदियों के साथ साथ 18 से 21 साल के कैदियों को अल्फाबेटिकल ऑर्डर के तहत बैरकों में रखे जाने की व्यवस्था से छूट रहेगी, इसके अलावा जेलों में काम करने वाले यानि की ज्यादातर सजायाफ्ता कैदियों को भी छूट रहेगी। डीजी जेल के आदेश में ये भी कहा गया है कि अगर एक ही गैंग या फिर विरोधी गैंग के कैदियों के नाम का पहला अक्षर समान होगा तो उनको एक साथ नहीं
रखा जाएगा और इसी तरह से आतंकवादियों और कुख्यात अपराधियों को भी सुरक्षा कारणों के चलते अल्फाबेटिकल बैरक व्यवस्था से अलग रखा जाएगा।
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खत्म होगी जेल अधिकारियों और कर्मचारियों की मनमानी
डीजी जेल रामाशास्त्री के आदेश के लागू होने के बाद ये माना जा रहा है कि अब जेल अधिकारियों और कर्मचारियों की मनमानी पर रोक लगेगी, क्योंकि अक्सर बैरक आवंटन को लेकर लगातार भ्रष्टाचार की शिकायतें आती थी, मसलन मनमर्जी से बैरक बांटने और कुख्यात गैंग के बंदियों के एक साथ रहने के लिए सुविधा शुल्क वसूले जाने का आरोप लगता था। अल्फाबेटिकल ऑर्डर बैरक एॅलाटमेंट लागू होने से दूसरा सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि कैदियों को पेशी पर ले जाने के लिए उनकी तलाश करना भी आसान हो जाएगा।