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कैसे हुई थी अखाड़ों उत्पात्ति और क्या है इतिहास? जानिए कब और किसने की इसकी स्थापना?

Mahakumbh 2025

Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 में आकर्षण का केंद्र बने अखाड़ों का इतिहास कोई नया नहीं है बल्कि इसका अस्तित्व आदिकाल से जुड़ा हुआ है। अखाड़ों की स्थापना का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है जिन्होंने धर्म और तीर्थस्थलों की रक्षा के उद्देश्य से इनका गठन किया था। अखाड़े शस्त्र और शास्त्र में पारंगत साधुओं के संगठनों के रूप में जाने जाते हैं। आइए अखाड़ों के महत्व को करीब से समझें।

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दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ में देश-विदेश के साधु-संत और श्रद्धालु गंगा और संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। महाकुंभ में बड़ी संख्या में शामिल होने वाले साधु-संतों के संगठित समूह को ‘अखाड़ा’ कहा जाता है। हालांकि, ‘अखाड़ा’ शब्द सुनते ही अक्सर कुश्ती के अखाड़े का ख्याल आता है। लेकिन एक बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि महाकुंभ में साधु-संतों के समूह को अखाड़ा क्यों कहा जाता है?

इसका इतिहास बेहद रोचक है। अखाड़ों की उत्पत्ति और उनका नामकरण हिंदू धर्म और संस्कृति के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संरक्षक के रूप में किया गया है। अखाड़ों की स्थापना का श्रेय महान दार्शनिक और संत,आदि शंकराचार्य को जाता है। उनका उद्देश्य धर्म और पवित्र स्थलों की रक्षा के लिए साधु-संतों के इन संगठनों की स्थापना करना था। आइए इस परंपरा की गहराई और महत्व को समझें।

शैव, वैष्णव और उदासीन संप्रदाय के साधु-संतों के कुल 13 अखाड़े प्रमुख रूप से मान्यता प्राप्त हैं। इनमें शैव संप्रदाय के 7, बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3, और उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े शामिल हैं। इनमें शैव संप्रदाय से जुड़े अखाड़े हैं श्री पंच दशनाम जूना (भैरव) अखाड़ा, श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा, श्री शम्भू पंच अग्नि अखाड़ा, श्री शम्भू पंचायती अटल अखाड़ा, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, और पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी।

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बैरागी वैष्णव संप्रदाय से जुड़े अखाड़ों में श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा, श्री पंच दिगम्बर अनी अखाड़ा, और श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा शामिल हैं। वहीं, उदासीन संप्रदाय के अखाड़ों में तपोनिधि श्री आनंद अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन, श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल, और श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन प्रमुख हैं।

ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में हिंदू धर्म की रक्षा के उद्देश्य से आदि शंकराचार्य ने शस्त्र और शास्त्र विद्या में निपुण साधुओं के संगठनों की स्थापना की थी। हालांकि, “अखाड़ा” शब्द का मूल संबंध कुश्ती से है लेकिन जहां भी दांव-पेंच की संभावना होती है वहां इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसी आधार पर इन संगठनों को भी “अखाड़ा” कहा गया। इन अखाड़ों का उद्देश्य केवल धार्मिक परंपराओं को सहेजना नहीं था बल्कि जरूरत पड़ने पर धर्म और पवित्र स्थलों की रक्षा करना भी था।

नागा साधु इसका उत्कृष्ट उदाहरण हैं जो युद्धकला और शस्त्र विद्या से जुड़ी परंपराओं को जीवित रखते हैं। महाकुंभ (Mahakumbh 2025) के दौरान अखाड़ों की उपस्थिति हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को सहेजने में एक अहम भूमिका निभाती है। ये अखाड़े न केवल पवित्र ग्रंथों और धार्मिक अनुष्ठानों को संरक्षित करते हैं बल्कि उन्हें भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाने का भी कार्य करते हैं।

(रिपोर्ट: मोहसिन खान) 

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