Report by: मोहसिन खान
Uttar Pradesh के बागपत जिले में ‘रावण’ नामक गांव: दशहरे पर नहीं होता रावण दहन, बल्कि की जाती है पूजा
बागपत: विजयदशमी पर शायद ही कोई शहर या कोई राज्य ऐसा होगा कि जहां लंकापति रावण के पुतले का दहन नहीं होता होगा..लेकिन यूपी में कुछ शहर ऐसे है जहां पर रावण के पुतले का दहन नहीं बल्कि पूजन होता है…यूपी के बागपत ज़िले की खेकड़ा तहसील में रावण उर्फ बड़ा गांव..ये यूपी का पहला ऐसा गांव है…जिसका नाम रावण के नाम पर पड़ा है…गांव के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते है और हज़ारों साल से चली आ रही परंपरा के मुताबिक दशहरें पर रावण के पुतले का दहन नहीं करते है और तो और इस गांव में रामलीला का मंचन तक भी नहीं होता है…आखिरकार क्यों होता है इस गांव में रावण का पूजन…त्रेता युग से क्या गांव का नाता..पढ़िए इस स्पेशल रिपोर्ट में
रावण और मां मंशा देवी की कथा गांव में मां मंशा देवी का एक प्राचीन मंदिर है, जिसे रावण की तपस्या और वरदान से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि रावण ने यहां पर मां मंशा देवी की मूर्ति स्थापित की थी। इस धार्मिक मान्यता के चलते गांववाले रावण का सम्मान करते हैं और दशहरे के दौरान रावण का पुतला जलाने की जगह उसकी पूजा करते हैं। इसके अलावा, इस गांव में रामलीला का आयोजन भी नहीं होता, क्योंकि ग्रामीण मानते हैं कि रावण की पूजा से ही गांव में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
इस वजह से नहीं होता रावण का दहन
प्रकांड विद्वान और लंकापति रावण का दशहरे पर दहन होता है, लेकिन यूपी के कुछ शहरों में रावण को पूजा जाता है…यूपी के बागपत में रावण उर्फ बड़ा गाँव मे बलशाली रावण को पूजा जाता है, ना रामलीला होती है और ना ही रावण का दहन…बात त्रेता युग की है…रावण ने शक्तिपुंज मां मंशा देवी की घोर तपस्या की…जिसके बाद मां ने प्रतिबिंब के रूप में रावण को दर्शन दिए और मनचाहा वरदान मांगने को कहा…जिसके बाद दशानन रावण ने मां मंशा देवी को लंका स्थापित करने का वरदान मांगा, लेकिन मां ने रावण ने वचन मांगा कि वो उनको धरती पर नहीं रखेगा और अगर ऐसा हुआ तो वो वहीं स्थापित हो जाएंगी, कहते है कि मां मंशा देवी को लेकर रावण कैलाश पर्वत से लंका के लिए चल दिया, बागपत के बड़ागांव से गुज़रते वक्त रावण को लघुशंका लगी तभी उसकी नज़र गाय चरा रहे ग्वाले पर गई, दरअसल ग्वाले का रूप धारण करे भगवान विष्णु को रावण समझ नहीं पाया और उसने मूर्ति ग्वाले का रूप धरे भगवान विष्णु को दे दी उसके बाद भगवान विष्णु ने मूर्ति को धरती पर रख दिया और मां वहीं पर स्थापित हो गई। ग्रामीण मानते है कि रावण की वजह से मां का शक्तिपुंज स्वरूप यहां पर स्थापित हुआ तो इसलिए रावण का पूजन शुरू हो गया।
राजस्व अभिलेखों में गांव का नाम ‘रावण’ दर्ज है
बागपत ज़िले की खेकड़ा तहसील में आने वाले रावण उर्फ बड़ागांव में मां मंशा देवी की मूर्ति स्थापित होने के बाद से ही गांव में रावण को अपना पूर्वज मानने की पंरपरा चल पड़ी, उस दौर में गांव के लोगो ने तय किया कि दशहरे पर रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाएगा और ना ही यहां पर रामलीला होगी…हालाकि शुरूआत में रामलीला का मंचन हुआ…लेकिन कहते है कि रामलीला के मंचन के बाद ही गांव पर विपदाए आनी शुरू हो गई और फिर उसके बाद रामलीला का मंचन भी बन्द हो गया। सबसे बड़ी बात ये है कि आज भी राजस्व अभिलेखों में इस गांव का नाम ‘रावण’ ही दर्ज है और यूपी का ये पहला ऐसा गांव है, जिसका नाम रावण के नाम पर है। बता दें कि गुप्तकाल में बने मां मंशा देवी मंदिर में भगवान विष्णु की अष्टधातु की दशावतार मूर्ति भी है…वहीं गांव के लोग दशहरे पर रावण के पुतले को जलाते नहीं है बल्कि आटे का रावण बनाकर उसकी पूजा करते है। नवरात्र के दिनों में मां मंशा देवी मंदिर में दूर दराज़ से श्रद्वालु आते है और मां से मनोकामना मांगते है।
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