Bulldozer action: सुप्रीम कोर्ट ने आज बुधवार को बुलडोजर कार्रवाई पर अपना अहम फैसला सुनाते हुए इसे पूरी तरह से गलत करार दिया है। इस पर कोर्ट का कहना है कि जब तक कोई आरोपी दोषी साबित नहीं हो जाता, तब तक वह निर्दोष है और अगर इस दौरान उसका घर गिराया जाता है तो यह पूरे परिवार के लिए सजा होगी। कोर्ट ने कहा कि दोषी का घर गिराना भी गलत है। दोषी के लिए सजा तय करना कोर्ट का काम है, कार्यपालिका का नहीं। कोर्ट ने उन अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के भी निर्देश दिए हैं जो बुलडोजर कार्रवाई जैसी कार्रवाई में शामिल हैं।
मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आश्रय का अधिकार और निर्दोष को इस अधिकार से वंचित करना पूरी तरह से असंवैधानिक होगा। जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने मामले की पूरी सुनवाई की और फैसला सुनाया, तो चलिए जानते हैं आखिर कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कुछ कहा?
प्वाइंट में समझे सुप्रीम कोर्ट ने कहा?
- बुलडोजर कार्रवाई पर कोर्ट ने कहा कि, राज्य सरकार को किसी भी आरोपी को दोषी या निर्दोष घोषित करने का अधिकार नहीं है और वह सजा के तौर पर ऐसे व्यक्ति का घर नहीं गिरा सकती। अभियुक्त के अपराध और सजा का निर्धारण करने का अधिकार केवल न्यायपालिका को है।
- अगर किसी की संपत्ति को सिर्फ इसलिए ध्वस्त किया जाता है क्योंकि वह अभियुक्त है, तो यह पूरी तरह से असंवैधानिक है। राज्य सरकार किसी को दोषी घोषित नहीं कर सकती और न ही उसे न्यायाधीश बनकर सजा निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है।
- कोर्ट ने कहा कि अगर कार्यपालिका कानून का पालन किए बिना, सिर्फ आरोपों के आधार पर किसी की संपत्ति को ध्वस्त करती है, तो यह कानून के शासन के सिद्धांत के खिलाफ है और उसे ऐसा करने की अनुमति नहीं है। कोर्ट ने आगे कहा कि हमारे संविधान में बुलडोजर कार्रवाई जैसे कृत्यों के लिए कोई जगह नहीं है और संविधान की प्रकृति और मूल्य इस तरह की किसी भी शक्ति के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देते हैं और कोर्ट ऐसी चीजों को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करेगा।
- कोर्ट ने जोर देकर कहा कि किसी भी अपराध के लिए अभियुक्त का घर नहीं तोड़ा जा सकता। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के अधिकार के खिलाफ है और ऐसी कार्रवाई पूरे परिवार के लिए सजा होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर सिर्फ एक संपत्ति नहीं है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक आकांक्षाओं का एक पहलू है, जिसके पीछे वर्षों का संघर्ष होता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी संपत्ति को अचानक ध्वस्त करने के लिए चिह्नित किया जाता है, जबकि उसी तरह बनी अन्य संपत्तियां बरकरार हैं, तो इसका उद्देश्य अवैध संपत्ति को ध्वस्त करना नहीं है, बल्कि ऐसा उस व्यक्ति को कानून की अदालत में दंडित करने के लिए किया गया है।
- पीठ ने कहा कि आरोपियों के पास कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय हैं, राज्य सरकार और अधिकारी बिना कानूनी प्रक्रिया के आरोपियों या दोषियों के खिलाफ मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकते। अगर किसी अधिकारी को मनमानी कार्रवाई के लिए जवाबदेह ठहराया जाता है, तो उसके लिए एक संस्थागत तंत्र होना चाहिए, जिसमें मुआवजा भी शामिल हो। ऐसे अधिकारियों को सत्ता का दुरुपयोग करने पर बख्शा नहीं जाएगा।
‘बिना कारण बताओ नोटिस दिए कोई भी तोड़फोड़ नहीं’
अपने फैसले में जस्टिस गवई ने कहा कि यह अच्छी बात नहीं है कि महिलाएं और बच्चे रात भर सड़कों पर रहें। पीठ ने निर्देश दिया कि बिना कारण बताओ नोटिस दिए कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए और नोटिस जारी होने के 15 दिनों के भीतर भी कोई तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए। पीठ ने निर्देश दिया कि तोड़फोड़ की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर सार्वजनिक भूमि पर अनधिकृत निर्माण है या अदालत ने तोड़फोड़ का आदेश दिया है, तो उसके निर्देश वहां लागू नहीं होंगे।