मोहसिन खान
कानपुर- उपचुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही उत्तर प्रदेश की राजनीतिक सरगर्मियां भी काफ़ी तेज़ हो गई है और इन्हीं सियासी सरगर्मियों के बीच दा मिड पोस्ट की खास प्रस्तुति हाल-ए-उपचुनाव में बात करेंगे कानपुर की चर्चित सीसामऊ विधानसभा सीट की, अब सवाल ये उठता है कि क्या सीसामउ में क्या समाजवादी पार्टी अपनी साख को बचा पाएगी या फिर इस सीट पर इतिहास बदल जाएगा, क्योंकि बीजेपी के लिए भी ये साख की लड़ाई बन गई है। दरअसल भाजपा पिछले 28 सालों से जीत का स्वाद नहीं चख पाई है। बता दें कि सपा से विधायक इरफान सोलंकी को एक आपराधिक मामलें में सजा सुनाए जाने के बाद सीट खाली हुई, सपा ने इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को प्रत्याशी बनाया है, जबकि बसपा से ब्राह्मण कार्ड खेला गया और वीरेन्द्र कुमार शुक्ला को चुनावी मैदान में उतारा गया है।
जातीय समीकरणों में मुस्लिम मतदाता ‘अव्वल’
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कानपुर नगर की सिसामऊ विधानसभा सीट का जातीय समीकरण उपचुनाव वाली दूसरी सीटों से काफी अलग है, इस विधानसभा सीट पर मुस्लिम और कायस्थ मतदाताओं का दबदबा है, जबकि ब्राह्मण, दलित, और वैश्य मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। जाहिर है कि इन जातीय समीकरणों के आधार पर सभी राजनीतिक दलों को अपनी रणनीति तैयार करनी होगी। हालाकि कुल मतदाताओं के आंकड़ों में अगर मुस्लिम मतदाताओं का प्रतिशत देखें तो यह 40 से 45 प्रतिशत है. अभी तक के चुनाव में देखा गया है कि मुस्लिम वोट एकतरफा रहे हैं, और अगर यही समीकरण उपचुनाव में दिखाई दिया तो फिर भाजपा के लिए फिर से यहां पर एक बड़ी चुनौती होगी, वहीं राजनीतिक पंडितों का ये भी मानना है कि भले ही बसपा से प्रत्याशी नया हो, लेकिन वो कहीं ना कहीं बीजेपी के प्रत्याशी के लिए मुसीबत खड़ा कर देगा। जातिगत आंकडों पर नज़र डालें तो मुस्लिम 80,000, कायस्थ 60,000, ब्राह्मण 50,000, दलित 45,000 ,वैश्य (बनिया) 35,000, यादव 25,000, कुर्मी 20,000, पाल 15,000, अन्य पिछड़ी जातियां 30,000 है।
1996 में आखिरी बार जीती थी भाजपा
सीसामऊ विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी को आखिरी बार 1996 में जीत हासिल हुई थी और उसके बाद से लगातार बीजेपी यहां पर जीत की बाट जोह रही है, जबकि सीट के इतिहास की बात करें तो 2017 से पहले कांग्रेस से इस सीट पर सबसे ज्यादा 5 बार जीत का परचम लहराया, भाजपा 3 बार विजयी रही और समाजवादी पार्टी दो बार से इस सीट पर काबिज़ है।