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Supreme Court on freebies: सुप्रीम कोर्ट की चुनावी मुफ्त योजनाओं पर सख्त टिप्पणी, काम करने की संस्कृति पर चिंता

Supreme Court

Supreme Court on freebies: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों में मुफ्त योजनाओं की घोषणाओं पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिससे देशभर में एक बहस छिड़ गई है। अदालत ने कहा कि ये मुफ्त उपहार, जैसे मुफ्त बिजली, पानी, राशन और नकद सहायता, लोगों में काम करने की प्रवृत्ति को प्रभावित कर सकते हैं। इस प्रकार की योजनाएँ लंबे समय तक आर्थिक प्रभाव डाल सकती हैं और समाज में आत्मनिर्भरता को कम कर सकती हैं।

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मुख्य न्यायाधीश [नाम गुप्त] ने इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कहा, “जो हाथ देता है, वही हाथ लेता है। जब हम ऐसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ सरकारी मुफ्त सहायता पर निर्भरता बढ़ रही है, तो यह आत्मनिर्भरता और कार्य संस्कृति के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।” यह बयान उस जनहित याचिका के संदर्भ में आया, जिसे [संस्था का नाम गुप्त] ने दायर किया था। याचिका में चुनावी मुफ्त योजनाओं की समीक्षा की मांग की गई थी।

Supreme Court ने कहा कि कल्याणकारी योजनाएँ समाज के गरीब वर्ग को सशक्त बनाने के लिए जरूरी हैं, लेकिन मुफ्त योजनाओं और लोकलुभावन वादों के बीच अंतर किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की योजनाओं को केवल तात्कालिक राहत के बजाय दीर्घकालिक उत्पादकता और विकास को बढ़ावा देने के रूप में डिजाइन किया जाना चाहिए।

वहीं, कई राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इन मुफ्त योजनाओं के पक्ष में आवाज़ उठाई। [राजनीतिक नेता का नाम गुप्त] ने कहा, “भारत में आय असमानता बहुत ज्यादा है। ऐसे में मुफ्त सेवाएँ समाज में समानता लाने का एक तरीका हो सकती हैं, ताकि हर कोई अपने अधिकारों तक पहुँच सके।”

इसके अलावा, इस पर बहस के दौरान अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी कि यह मुफ्तखोरी समाज में काम करने की इच्छा को कम कर सकती है। डॉ. [नाम गुप्त] ने कहा कि जब बुनियादी जरूरतें बिना किसी प्रयास के पूरी हो जाती हैं, तो यह लोगों को श्रम बाजार से बाहर कर सकता है।

Supreme Court की टिप्पणी के बाद, चुनाव आयोग और विभिन्न राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर और विचार मांगे गए हैं। कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, इस निर्णय से भविष्य में चुनावी वादों की समीक्षा सख्त हो सकती है, और राजनीतिक दलों को दीर्घकालिक विकास पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना पड़ सकता है।

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