Allahabad High Court: प्रयागराज हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में एक नई दिशा सामने आई है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर किसी मामले में नए सबूत, गवाह या जानकारी मिलती है, तो उसी घटना पर दूसरी FIR दर्ज की जा सकती है। यह फैसला कानूनी प्रक्रिया में लचीलापन और पारदर्शिता बढ़ाने वाला है। जस्टिस मंजू रानी चौहान ने इस फैसले में कहा कि हालांकि सामान्यत: एक ही घटना पर एक से ज्यादा FIR नहीं हो सकतीं, लेकिन नए तथ्यों के आधार पर अपवाद संभव हैं।
मथुरा केस से जुड़ा फैसला
यह ऐतिहासिक फैसला मथुरा के एक हत्या के मामले से संबंधित है। मथुरा निवासी संगीता मिश्रा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज FIR को झूठा बताया था। संगीता पर अपने पति की हत्या का आरोप लगाया गया था, जिसके चलते उन्हें पुलिस ने जेल भेज दिया था। संगीता का दावा था कि उनके ससुराल में प्रोपर्टी विवाद के कारण उनके पति के भाईयों ने हत्या की थी। इसके लिए उन्होंने मथुरा के CJM कोर्ट में धारा-156(3) के तहत एक नई FIR दर्ज करने का अनुरोध किया था, लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए उनका प्रार्थना-पत्र खारिज कर दिया कि एक ही घटना के लिए दो FIR नहीं हो सकतीं।
Allahabad High Court का निर्देश
Allahabad High Court की जज मंजू रानी चौहान ने मामले की समीक्षा के बाद मथुरा CJM को निर्देश दिया कि संगीता मिश्रा की अर्जी पर तुरंत कार्रवाई की जाए और दूसरी FIR दर्ज की जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि FIR सिर्फ एक प्रारंभिक रिपोर्ट होती है, अंतिम निर्णय नहीं। अगर नए तथ्यों और सबूतों का खुलासा होता है, तो उनके आधार पर दूसरी FIR की अनुमति दी जा सकती है।
कानूनी परिदृश्य में बदलाव
इस फैसले ने FIR से जुड़े पारंपरिक नियमों को एक नई दृष्टि दी है। आम तौर पर यह माना जाता था कि एक ही घटना के लिए एक से ज्यादा FIR नहीं हो सकतीं, लेकिन इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि यदि कोई नया तथ्य या सबूत सामने आता है, तो दूसरी FIR दर्ज करने का विकल्प खुला रहता है। यह फैसला उन मामलों में न्याय सुनिश्चित करने में मदद करेगा, जहां शुरुआत में सही जानकारी सामने नहीं आ पाई हो।
न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता
इस फैसले का दूरगामी प्रभाव होगा, क्योंकि यह उन मामलों में मिसाल बनेगा, जहां नई जानकारी और सबूतों के आधार पर न्याय की पुन: जांच आवश्यक हो जाती है। यह न केवल पीड़ितों के लिए न्याय की दिशा में सकारात्मक कदम है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया को भी अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाएगा।
समाज पर असर
इस निर्णय से जनता का न्यायिक प्रणाली में विश्वास और मजबूत होगा। लोग यह महसूस करेंगे कि अगर किसी मामले में उनके खिलाफ गलत FIR दर्ज होती है, तो नए तथ्यों के आधार पर न्यायालय में पुन: सुनवाई की संभावना है। यह फैसला पुलिस और न्यायालय दोनों पर यह जिम्मेदारी डालता है कि वे जांच में पूरी गंभीरता और निष्पक्षता से काम करें।