UP doctors: उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर सख्त कदम उठाने का फैसला किया है। हाल ही में सामने आए मामलों के बाद यह निर्णय लिया गया है कि सरकारी डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस पर नजर रखने के लिए राज्य के सभी 75 जिलों में विशेष कमेटियां बनाई जाएंगी। स्वास्थ्य विभाग ने सभी डॉक्टरों से इस संबंध में हलफनामा जमा करने को भी कहा है।
स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. रतनपाल सिंह सुमन ने स्पष्ट किया है कि सरकारी UP doctors के प्राइवेट प्रैक्टिस पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। यदि कोई डॉक्टर इसका उल्लंघन करते पाया गया, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा, संबंधित चीफ मेडिकल अफसर (सीएमओ) को भी जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
हलफनामा देना होगा जरूरी
महानिदेशालय ने सीएमओ और सीएमएस को निर्देश दिया है कि वे जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में कार्यरत डॉक्टरों से हलफनामा प्राप्त करें। इस हलफनामे में डॉक्टरों को यह स्पष्ट करना होगा कि वे मुख्यालय में ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं और किसी भी प्रकार की प्राइवेट प्रैक्टिस में शामिल नहीं हैं।
पिछले मामलों से सबक
प्रयागराज के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में हाल ही में सीएमएस डॉ. दिग्विजय सिंह और पांच अन्य डॉक्टरों पर प्राइवेट प्रैक्टिस करने के आरोप साबित हुए। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी सख्त रुख अपनाते हुए आदेश दिया कि सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक लगाई जाए। इसके बाद दोषी डॉक्टरों को उनके पदों से हटा दिया गया।
प्रभाव और उद्देश्य
सरकार का यह कदम सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया है। प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक लगने से UP doctors का ध्यान पूरी तरह से सरकारी अस्पतालों की सेवाओं पर केंद्रित होगा। इसके साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होने की उम्मीद है।
इस फैसले से यह साफ हो गया है कि योगी सरकार सरकारी डॉक्टरों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए कोई समझौता नहीं करेगी। सरकार की यह पहल राज्य के स्वास्थ्य ढांचे को बेहतर बनाने में मदद करेगी।
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